बाल गंगाधर तिलक
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक को उन स्वतंत्रता सेनानियों में से एक माना जाता है जो अपनी उग्रवादी चेतना, विचारधारा, साहस, बुद्धि और अपनी अटूट देशभक्ति के कारण जाने जाते हैं।
बाल गंगाधर तिलक का व्यक्तित्व और कृतित्व एक ऐसी संघर्ष की कहानी है जिन्होंने एक नए युग का निर्माण किया था।इन्होने भारतवासियों को एकता और संघर्ष का एक ऐसा पाठ पढ़ाया था जिससे वे स्वराज्य के लिए संगठित हो उठे थे।
बाल गंगाधर तिलक एक राजनेता ही नहीं बल्कि एक महान विद्वान् और दार्शनिक भी थे। बाल गंगाधर तिलक जी ने ही ‘स्वराज्य मेरा जन्म सिद्ध अधिकार’ का नारा लगाया था ये स्वाधीनता में विश्वास रखने वाले पुरुष थे।
गंगाधर तिलक का जन्म :
बाल गंगाधर तिलक का जन्म 23 जुलाई, 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी के चिखली नामक गाँव में हुआ था। बाल गंगाधर तिलक जी का जन्म मध्यम वर्ग के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
इनके दादा जी का नाम केशवराव था। इनकी माता का नाम पारवती बाई गंगाधर तिलक और पिता का नाम रामचन्द्र गंगाधर तिलक पंत था। इनके दादाजी पेशवा राज्य के एक उच्च पद पर आसीन थे।
गंगाधर तिलक की शिक्षा :
तिलक जी के पिता एक अध्यापक थे। उन्होंने बाल गंगाधर तिलक को संस्कृत, मराठी, गणित, का अच्छी तरह से घर पर ही ज्ञान करा दिया था।
सन् 1873 में बाल गंगाधर तिलक ने डेकन कॉलेज में दाखिला लिया था। बुरी किस्मत की वजह से वे असफल हो गये थे।
बाल गंगाधर तिलक जी ने सन् 1876 में बी० ए० की परीक्षा को पहली श्रेणी से पास किया थी। एम० ए० की परीक्षा में उन्हें दो बार असफलता प्राप्त हुई थी।
विद्यार्थी जीवन :
बाल गंगाधर तिलक जी ने सन् 1866 में पूना के स्कूल में दाखिला लिया। बाल गंगाधर तिलक जी की स्मरण शक्ति बहुत ही प्रबल थी।
संस्कृत के सभी श्लोक उन्हें मुंह जुबानी याद रहते थे। वे निर्भीक प्रवृति के व्यक्ति थे जिसकी वजह से वे अध्यापकों से उलझ जाते थे।
उनके पिता ने उन्हें घर पर ही बहुत कुछ सिखाया था और उनकी स्मरण शक्ति के कारण वे पूरे विद्यालय में बहुत ही होनहार विद्यार्थी थे।
उनके शिक्षक, माता, पिता और अन्य लोगों को उन पर बहुत ही गर्व था। वे अपने परिवार का हमेशा समर्थन करते रहते थे।
प्रारंभिक जीवन :
जब अंग्रेजों द्वारा पेशवा राज्य का विघटन कर दिया गया तो इनके परिवार की स्थिति कुछ अच्छी नहीं थी। इन्हें बहुत से कष्टों का सामना करना पड़ा था।
बाल गंगाधर तिलक जी स्वराज्य के लिए उग्रवादी भावना को अच्छा मानते थे। बाल गंगाधर तिलक जी प्रार्थना, याचना, अपील और दया के कट्टर विरोधी थे।
तिलक जी स्वदेशी चीजों के हमेशा से समर्थक थे। बाल गंगाधर तिलक जी का जन्म महाराष्ट्र के तटीय क्षेत्र में हुआ था इस वजह से वे वहाँ पर पूरे 10 साल तक रहे थे।
बाल गंगाधर का विवाह :
सन् 1871 में जब इनकी उम्र 15 वर्ष की थी तब उनका विवाह ताराबाई नामक लडकी से हुआ था। बाल गंगाधर की उम्र बहुत कम थी उस समय उनकी इच्छा शादी करने की नहीं थी ।
गंगाधर तिलक की नौकरी :
बाल गंगाधर तिलक जी ने जिस स्कूल की स्थापना की थी उसमें एक शिक्षक के रूप में कार्य किया। बाल गंगाधर तिलक जी ने सन् 1914 में भारतीय गृह नियम लीग के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया।
राजनीति में प्रवेश :
बाल गंगाधर तिलक जी ने सन् 1880 में भारतीय राजनीति में प्रवेश लिया था। बाल गंगाधर तिलक जी ने बलवंत वासुदेव की मदद से विद्रोह का झंडा लहराकर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विरोध को प्रकट किया था।
तिलक जी ने ही देश की जनता को लार्ड रिपन के विचारों से रुबरु कराया था।
बाल गंगाधर तिलक जी ने सन् 1880 में पूणा में न्यू इंग्लिश स्कूल की स्थापना की थी। इसी तरह से उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में अपने काम की शुरुआत की थी।
बाल गंगाधर तिलक जी ने सन् 1881 में पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रवेश किया था। सबसे पहले बाल गंगाधर तिलक जी ने मराठा केसरी पत्रिका का संचालन किया था।
मराठा केसरी पत्रकारिता के माध्यम से जनता के लोगों और देशी रियासतों का पक्ष प्रस्तुत किया था जिसकी वजह से उन्हें जेल जाना पड़ा था।
जेल जाकर बाहर आने के बाद उसने डेकन एजुकेशन सोसायटी और फग्युर्सन कॉलेज की स्थापना की। सरकार ने तिलक जी की नेतृत्व वाली सभा की मान्यता को वहां रह कर दिया था।
बाल गंगाधर तिलक जी ने मराठा और केसरी में लेख लिखे थे और ब्रिटिश सरकार की खूब आलोचना की थी।
उन पर राजद्रोह का आरोप लगाया गया था और लगभग 50,000 रुपए पर सजा से मुक्ति के आदेश को सुनकर मुंबई के एक सेठ द्वारिकादास धरमसी ने उनकी इस राशि को अदा करके छुडवाया था।
इन सब के बाद बाल गंगाधर तिलक पर राजद्रोह के मुकदमे को चलाकर 18 महीने की सजा सुनाई गई थी। सुनवाई के लिए एक भी भारतीय जज्ज नहीं रखा गया था।
ब्रिटिश सरकार की आलोचना की वजह से मराठा केसरी पत्रकारिता के लिए उन्हें पहली बार चार साल की जेल काटनी पड़ी थी।
सामाजिक संघर्ष :
बाल गंगाधर तिलक जी ने सन् 1888 से सन् 1889 में शराबबंदी, नशाबंदी और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाते हुए पत्रों के माध्यम से कार्यवाई की थी। बाल गंगाधर तिलक जी ने सन् 1889 में मुंबई कांग्रेस का प्रतिनिधि चुना गया था।
बाल गंगाधर तिलक जी ने सन् 1891 को सरकार द्वारा विवाह की उम्र का स्वीकृति विधेयक का बिल प्रस्तुत किया था।
एक बार मिशन स्कूल में भाषण देने पर बाल गंगाधर तिलक सनातनी हिन्दुओं के विरोध का और उसके प्राश्चित के लिए उन्हें काशी स्नान करना पड़ा था।
जनता की गरीबी को दूर करने के लिए उनकी भूमि सुधार से संबंधी नीतियों की बहुत आलोचना हुई है।
बाल गंगाधर तिलक जी ने महाराष्ट्र में गणपति के महोत्सव और शिवाजी जयंती को शुरू करके सार्वजनिक आयोजना के जरिए एकता के संदेश को लोगों तक पहुंचाया था।
बाल गंगाधर तिलक जी ने सन् 1895 में कांग्रेस की नीतियों की आलोचना करके उन्होंने रानाडे और गोखले को चुनौती दी थी।
उन्होंने जनता की दुर्भिक्ष के समय में सहायता और सेवा करके लगान और कर जैसे कानूनों का विरोध किया था। बाल गंगाधर तिलक जी ने सन् 1899 में नरमदलवादी नीतियों की भी आलोचना की थी।
राष्ट्रीयता के विचार और अन्य विचार :
बाल गंगाधर तिलक जी के प्रमाणों ने दुनिया भर के पुरातत्वों को हैरान कर दिया था। बाल गंगाधर तिलक जी ने सन् 1905 में स्वदेशी आंदोलन को पूरे महाराष्ट्र में फैला दिया था।
बाल गंगाधर तिलक जी ने राष्ट्रीय शिक्षा का प्रचार करने के साथ-साथ उन्होंने देवनागरी लिपि को प्रांतीय भाषाओं में प्रयोग करने पर बहुत जोर दिया था।
उन्होंने सन् 1907 के सूरत के अधिवेशन में नाम का प्रस्ताव रखकर कांग्रेस में फूट डाली थी। जब तिलक जी का नेतृत्व करने के लिए गरमपग्थियों का दल अलग हुआ था तब उन्होंने स्वदेशी का नारा और ज्यादा बुलंदी से लगाया था।
उन्होंने नशाबन्दी आंदोलन को सरकार की आभाकारी नीतियों के संबंध में चलाया था।
तिलक जी ने केसरी के जरिए मुजफ्फरपुर कांड में खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी की फांसी का विरोध किया था।
उन्होंने रूस के क्रांतिकारियों के साथ में रहकर बम बनाने और छापामार युद्ध की शैली को सीखा था। शक के आधार पर उनके घर से तलाशी के समय में बम बनाने का सामान हाथ लगा था।
इस आरोप की पैरवी को मोहम्मद अली जिन्ना कर रहे थे। खुद तिलक जी ने इसकी 21 घंटे तक पैरवी की थी। लेकिन उन्हें सन् 1908 में इस आरोप की वजह से उन्हें 6 साल की काला पानी की सजा सुना दी गई थी।
इस 6 साल की सजा में उन्हें मांडले जेल के बहुत ही कष्टप्रद माहौल में रखा गया था।
इसी बीच उनकी पत्नी की भी मृत्यु हो गई थी। जब 1914 में वे मांडले जेल से रिहा हुए तो उन पर कई अपराधों को थोपा गया था।
सन् 1916 में तिलक जी ने कांग्रेस और मुस्लिम लीग का संयुक्त अधिवेशन भी करवाया था। दोनों राज्यों ने लखनऊ पैक्ट के द्वारा स्वराज्य की मांग की थी।
जब सन् 1917 में कांग्रेस अधिवेशन हुआ था तो एनीबेसेंट को अध्यक्ष निर्वाचित करवाया था। जब 1918 में मुंबई अधिवेशन के दौरान मिल रहे अध्यक्ष पद को स्वीकार करने से मना कर दिया था।
आंदोलनों में भाग :
जब सन् 1905 में बंग-भंग आंदोलन हुआ था उसमें बाल गंगाधर तिलक जी गरमपग्थी की विचारधारा के रूप में उभरे थे।
उन्होंने स्वदेशी आंदोलन में भाग लेकर उसे पूरे महाराष्ट्र में फैलाया था। सन् 1914 में उन्होंने एनीबेसेन्ट होमरूल आंदोलन में भाग लिया।
रचित पुस्तकें :
बाल गंगाधर तिलक जी ने सन् 1903 के कारावास के समय में ही दि आर्कटिक होम इन दी वेदाज पुस्तक को लिखा था।
बाल गंगाधर जी ने वैदिक कोनोलाजी एण्ड वेदांग ज्योतिष भी लिखी थी जिसमें उन्होंने ऋग्वेद को ईसा से चार हजार पहले का बताया था।
बाल गंगाधर तिलक जी ने 6 वर्ष की जेल यात्रा के समय 100 पृष्ठों की गीता की एक टीका लिखी थी जिसमे उन्होंने गीता की कर्मयोग व्याख्या में भक्ति, ज्ञान और कर्म में कर्म को उच्च बताया जो गीता रहस्य के नाम से बहुत प्रसिद्ध हुई थी।
गंगाधर तिलक की मृत्यु :
बाल गंगाधर तिलक जी ने अपने संघर्ष और साथियों के साथ पर भारत माता को स्वतंत्रता दिलाने के लिए बहुत महान-महान कार्य किये।
वे जब तक जिन्दा रहे थे तब तक भारत को आजाद करने के लिए लड़ते रहे। लेकिन बाल गंगाधर तिलक की 1 अगस्त, 1920 को मुंबई में निमोनिया के कारण से अचानक ही मृत्यु हो गई थी।
उपसंहार ः
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक एक महान राष्ट्रभक्त होने के साथ-साथ वर्ण राजनीतिज्ञ, दार्शनिक और चिंतक भी थे।
उनकी विचारधारा ने तत्कालीन समय में तिलक युग की शुरुआत की थी। बाल गंगाधर तिलक जी ने स्वतंत्रता आंदोलन को एक नई दिशा दी थी।
उनका दिया हुआ नारा कि – ‘स्वतंत्रता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है’ सभी भारतीयों के लिए गौरविय और स्वाभिमान का प्रेरणास्त्रोत है।
बाल गंगाधर तिलक जी ने जो महान कार्य किये थे उनकी वजह से वे भारत के इतिहास में हमेशा अमर और महान पुरुषों में गिने जायेंगे।