भक्त अजामिल ने नाम के प्रताप से मुक्ति प्राप्त करके अपने जीवन को सकारथ किया। भक्त अजामिल की कथा इस प्रकार है।
भक्त अजामिल एक ऊँचे ब्राह्मण कुल में पैदा हुए थे। उत्तम ब्राह्मण कुल और ऊँची जाति के धनवान खानदान की सन्तान होते हुए भी अजामिल अपनी यौवनावस्था में बुरी संगति के शिकार हो गए। इन्सान के मन पर संगति का जो प्रभाव होता है वह किसी से छिपा नहीं रहता।
कुसंगति का कुप्रभाव तो अनेक जन्मों तक इन्सान के मन से दूर नहीं होता।
पाप कर्म करने से जीव का इतना नुकसान नहीं होता जितना एक पल की बुरी संगति के प्रभाव से हो जाता है। पाप कर्म तो उसके दण्ड का भुगतान कर लेने पर स्वतः ही समाप्त हो जाते हैं परन्तु कुसंगति का कुप्रभाव तो अनेक जन्मों तक इन्सान के मन से दूर नहीं होता।
जिसके परिणामस्वरूप उसे अनेक प्रकार की यातनाएं सहन करनी पड़ती हैं इसलिए संतों ने अपनी वाणियों में हर जगह जीव को कुसंगति से बचने के लिए सत्संग में जाने की हिदायत दी है।
विचारवान पुरुष को जितना हो सके, कुसंग का विष की न्याईं समझ उससे हर पल दूर रहकर सचेत रहना चाहिए और सदैव सत्संग का आश्रय लेकर अपनी आत्मिक उन्नति के कार्य में लगे रहना चाहिए।
भक्त अजामिल का यह दुर्भाग्य था कि उसे अपनी भरपूर यौवनावस्था में ऐसी बुरी संगति मिल गई जिसने धीरे धीरे उसे एक सदाचारी उत्तम ब्राह्मण से महाकामी, कुकर्मी, पापी, चोर और डाकू बना दिया।
समय ने पलटा खाया। संयोगवश भक्त अजामिल जन्मों के शुभ संस्कार जाग उठे। जिस शहर में अजामिल रहता था वहाँ से एक दिन संतों का गुज़र हुआ।
संतो ने वहाँ रात को विश्राम करने के लिये लोगों से किसी धर्मात्मा भक्त का पता पूछा। किसी मजाकिये आदमी ने हंसकर कहा कि महाराज! इस शहर में अजामिल नाम का एक सदाचारी ब्राह्मण रहता है जो बड़ा धर्मात्मा, परोपकारी और भक्त है। आप उसके पास जाकर रहो, वह आपकी बड़े प्रेम से सब प्रकार की सेवा सुश्रुषा करेगा।
यह सुनकर वे संत भक्त अजामिल का घर पूछते पूछते वहाँ आ पहुँचे। अजामिल को तो संतों से सख्त नफ़रत थी और वह सदा उनका निरादर करता था। परन्तु उसका यह सौभाग्य था कि संतों ने वहाँ जाकर जब यह पूछा कि क्या भक्त अजामिल का घर यही है?
तो उसके भूल जन्मों के शुभ संस्कार जाग उठे और उसको मन हा मन अपने किए हए पाप कर्मों पर पश्चात्ताप होने लगा। वह संतों के चरणों में गिरकर ज़ार ज़ार रोने लगा और हाथ जोड़कर विनय करने लगा-महाराज! अजामिल अब भक्त कहाँ रहा? वह तो महापापी और कुकर्मी बन गया है।
दुर्भाग्यवश में ही वह नीच अधम जीव हूँ जिस घर आप स्वयं पधारे हैं। मुझ नीच से आपको कौन सा काम आन पड़ा है ?
संत तो सदैव परोपकारी एवं दयालु स्वभाव के होते हैं। उनका मिलना जीव के लिए मोक्ष और आनन्द प्रदान करने वाला होता है। अजामिल का यह परम सौभाग था कि उसे संतों के दर्शन नसीब हुए।
उसके पाप कर्मों का नाश तो उसी समय हो गया जिस वक्त उसने संतों के चरणों में गिरकर, रो रोकर अपने पाप कर्मों कापश्चात्ताप कर लिया।
संतों ने उसे उठाकर मुसकराते हुए कहा कि अजामिल! तुम्हें पापी, कुकर्मी और अधर्मी कौन कहता है? तुम तो सच्चे भक्त हो और सच्चे भक्तों के ये लक्षण होते हैं कि वे स्वयं को निम्न से भी निम्नतर मानते हैं। भगवान की कृपा से तुम्हारा सब मंगल होगा।
संतों ने उसे नाम का उपदेश दे कृतार्थ किया। अजामिल कहने लगा कि महाराज ! बहुत समय से बुरी संगति में रहने के कारण और नीच कर्म करते हुए मेरा हृदय मलिन हो गया है इसलिए मुझसे नाम का सुमिरण न हो सकेगा। इस मन की नाम में लगने की आदत छूट गई है।
संतों ने दया करके उसके बेटे का नाम ‘नारायण’ रख दिया और कहा कि इस नाम को पुकारते पुकारते सहज में ही तुम्हारा कल्याण हो जाएगा।
अजामिल ने ऐसा ही किया और अंत समय जब यमराज के दूत उसे लेने पहुंचे तो उस समय घबराकर वह नारायण-नारायण पुकारने लगा। जैसे ही भगवान का पवित्र नाम उसके मुख से निकला, दूत वहाँ से भाग खडे हुए और कहने लगे कि यह तो भगवान का भक्त है।
हमसे भूल हो गई जो हम इसे नरकों की ओर ले जा रहे थे। उसी समय भगवान के पार्षदों ने आकर अजामिल को भगवान के अमरधाम में पहुंचा दिया। यह सब नाम के प्रताप से ही संभव हुआ।
॥ कविता ॥
1. कलयुग में तरना आसान है एक संत ने कहा ।
गुरु शब्द में मन को लगा कर मुक्त हो जा ।
दूसरा कोई सरल करम नहीं है इस जैसा ।
कर कमाई नाम की जीवन को सफल कर जा ।
2. किसी से भी व्यर्थ वाद विवाद न कमाओ ।
एकान्त में बैठकर हरि के ही गुणवाद गाओ ।
एकाग्र करके मन को गुरु शब्द में लगाओ ।
भाणे में चलकर प्रभ की प्रसन्नता को पाओ ।