पूजा-अर्चना का विशेष दिन है महाशिवरात्रि

महाशिवरात्रि

साल में कुल 12 शिवरात्रि आती हैं, लेकिन फाल्गुन मास की महाशिवरात्रि का विशेष महत्व है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार इस दिन भगवान शिव और शक्ति का मिलन हुआ था। शिवरात्रि का अर्थ “वह रात्रि जिसका शिवतत्त्व से घनिष्ठ संबंध है”।

भगवान शिव की अतिप्रिय रात्रि को शिवरात्रि कहा जाता है। शिव पुराण के ईशान संहिता में बताया गया है कि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि में आदिदेव भगवान शिव करोड़ों सूर्यो के समान प्रभाव वाले लिंग रूप में प्रकट हुए-

फाल्गुनकृष्णचतुर्दश्यामादिदेवो महानिशि। शिविलगतयोद्भूतः कोटिसूर्यसमप्रभः ॥

शिवपुराण में उल्लेखित एक कथा के अनुसार इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था और भोलेनाथ ने वैराग्य जीवन त्याग कर गृहस्थ जीवन अपनाया था। इस दिन विधिवत आदिदेव महादेव की पूजा अर्चना करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है व कष्टों का निवारण होता है।

महाशिवरात्रि की पौराणिक कथा

शिवरात्रि को लेकर बहुत सारी कथाएं प्रचलित हैं। विवरण मिलता है कि भगवती पार्वती ने शिव को पति के रूप में पाने के लिए घोर तपस्या की थी। पौराणिक कथाओं के अनुसार इसके फलस्वरूप फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था।

यही कारण है कि महाशिवरात्रि को अत्यन्त महत्वपूर्ण और पवित्र माना जाता है। वहीं गरुड़ पुराण में इस दिन के महत्व को लेकर एक अन्य कथा कही गई है, जिसके अनुसार इस दिन एक निषादराज अपने कुत्ते के साथ शिकार खेलने गया किन्तु उसे कोई शिकार नहीं मिला।

वह थककर भूख-प्यास से परेशान हो एक तालाब के किनारे गया, जहां बिल्व वृक्ष के नीचे शिवलिंग था। अपने शरीर को आराम देने के लिए उसने कुछ बिल्व पत्र तोड़े, जो शिवलिंग पर भी गिर गए। पत्तों को साफ करने के लिए उसने उन पर तालाब का जल छिड़का, जिसकी कुछ बून्हें शिवलिंग पर भी जा

गिरीं। ऐसा करते समय उसका एक तीर नीचे गिर को गया, जिसे उठाने के लिए वह शिव लिंग के सामने दो नीचे को झुका। इस तरह शिवरात्रि के दिन शिव- पूजन की पूरी प्रक्रिया उसने अनजाने में ही पूरी दो कर ली। मृत्यु के बाद जब यमदूत उसे लेने आए, क तो शिव के गणों ने उसकी रक्षा की और उन्हें दे भगा दिया।

जब अज्ञानतावश महाशिवरात्रि के दिन क भगवान शंकर की पूजा का इतना अद्भुत फल है, तो समझ-बूझ कर देवाधिदेव महादेव का पूजन कितना अधिक फलदायी होगा।

महाशिवरात्रि का महत्त्व

एक बार मां पार्वती ने शिव से पूछा कि कौन- सा व्रत उनको सर्वोत्तम भक्ति व पुण्य प्रदान कर सकता है? तब शिव ने स्वयं इस शुभ दिन के विषय में बताया था कि फाल्गुन कृष्ण पक्ष के चतुर्दशी की रात्रि को जो उपवास करता है, वह मुझे प्रसन्न कर लेता है।

मैं अभिषेक, वस्त्र, धूप, अर्घ्य तथा पुष्प आदि समर्पण से उतना प्रसन्न नहीं होता, जितना कि व्रत-उपवास से इसी दिन, भगवान विष्णु व ब्रह्मा के समक्ष सबसे पहले शिव का अत्यंत प्रकाशवान आकार प्रकट हुआ था। ईशान संहिता के अनुसार – भगवान ब्रह्मा व भगवान विष्णु

को अपने अच्छे कर्मों का अभिमान हो गया इससे दोनों में संघर्ष छिड़ गया ।

अपना महात्म्य व श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए दोनों आमादा हो उठे। तब भोलेनाथ ने हस्तक्षेप करने का निश्चय किया, चूंकि वे इन दोनों देवताओं को यह आभास व विश्वास दिलाना चाहते थे कि जीवन भौतिक आकार-प्रकार से कहीं अधिक है।

भगवान शिव एक अग्नि स्तम्भ के रूप में प्रकट हुए। इस स्तम्भ का आदि या अंत दिखाई नहीं दे रहा था। भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी ने इस स्तम्भ के ओर-छोर को जानने का निश्चय किया।

भगवान विष्णु नीचे पाताल की ओर इसे जानने गए और ब्रह्मदेव अपने हंस वाहन पर बैठ ऊपर गए वर्षों यात्रा के बाद भी वे इसका आरंभ या अंत न जान सके। वे वापस आए, अब तक उनका क्रोध भी खत्म हो चुका था तथा उन्हें भौतिक आकार की सीमाओं का ज्ञान मिल गया था।

जब उन्होंने अपने अहम को समर्पित कर दिया, तब भगवान भोलेनाथ प्रकट हुए तथा सभी • विषय वस्तुओं को पुनर्स्थापित किया । शिव का यह प्राकट्य फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि को ही हुआ था।

इसलिए इस रात्रि को महाशिवरात्रि कहते हैं। इसी दिन भगवान शिव और आदि शक्ति का विवाह हुआ था। भगवान शिव का ताण्डव और मां भगवती का लास्य नृत्य दोनों के समन्वय से ही सृष्टि में संतुलन बना हुआ है, अन्यथा ताण्डव नृत्य से सृष्टि खण्ड-खण्ड हो जाए। इसलिए यह महत्त्वपूर्ण दिन है।

शिवरात्रि कैसे मनाएं

रात्रि में उपवास करें। दिन में केवल फल और दूध पिएं। भगवान शिव की विस्तृत पूजा करें, रुद्राभिषेक करें तथा शिव के मन्त्र ‘देव-देव महादेव नीलकंठ नमोवस्तु ते । कर्तुमिच्छाम्यहं देव शिवरात्रिव्रतं तब ॥ तब प्रसादाद् देवेश निर्विघ्न भवेदिति । कामाद्याः शत्रवो मां वै पीडांकुर्वन्तु नैव हि ॥’ मंत्र से यथा शक्ति पाठ करें और शिव महिमा से युक्त भजन गाएं ।

‘ऊं नमः शिवाय’ मन्त्र का उच्चारण जितनी बार हो सके, करें तथा मात्र शिवमूर्ति और भगवान शिव की लीलाओं का चिंतन करें।

फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की महादशा यानी आधी रात के वक्त भगवान शिवलिंग रूप में प्रकट हुए थे, ऐसा ईशान संहिता में कहा गया है। इसीलिए सामान्य जनों के द्वारा पूजनीय रूप में भगवान शिव के प्राकट्य समय यानी आधी रात में जब चौदस हो उसी दिन यह व्रत किया जाता है। फाल्गुन शिवरात्रि का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है।

वैसे तो हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को शिवरात्रि आती है, लेकिन फाल्गुन महीने में आने वाली शिवरात्रि को विशेष फलदायी माना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने और पूजा-अर्चना करने वाले भक्तों पर महादेव जल्दी प्रसन्न होते हैं और उन्हें उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है। जिन लोगों पर महादेव की कृपा होती है, उनके जीवन में हमेशा सुख समृद्धि बनी रहती है।

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