जब परमात्मा प्रत्येक के हृदय में निवास करते हैं, तो हम बुरे कर्म कैसे करते हैं?

उत्तर -यह सत्य है कि परमात्मा प्रत्येक के हृदय में निवास करते हैं। जब व्यक्ति बुरे कर्म करने में तत्पर होता है, तो सबसे पहले उसका अन्तःकरण उसे सचेत करता है कि यह गलत है, तुम यह क्या कर रहे हो।

लेकिन वह व्यक्ति अन्तःकरण की आवाज़ की ओर ध्यान ही नहीं देता। पवित्र आत्मा पर पड़ा माया का पर्दा सत्य के प्रकाश को देखने नहीं देता।

यदि सूर्य बादल से ढक जाता है, तो क्या सूर्य को देखा जा सकता है? जब बादल हटते हैं केवल तब ही सूर्य दिखाई देता है। पूर्व कर्मों के बुरे प्रभावों के कारण माया का एक आवरण पापी की आत्मा पर गिर जाता

है जिससे न वह अन्तःकरण की आवाज़ को सुनता है और न ही सत्य-असत्य के भेद को जान सकता है।

किसी के दो पुत्र हों। दोनों का अपना-अपना अलग-अलग चरित्र होता है। एक धर्म-परायण होता है जबकि दूसरा पापी । – दोनों का पालन-पोषण एक ही समान वातावरण में होता है। माता-पिता उन्हें अच्छी शिक्षा देते हैं, फिर भी उनके कर्म अलग हैं।

माता-पिता स्वाभाविक ही दोनों को अच्छे व गुणवान चरित्र वाला होना पसन्द करेंगे। इसीप्रकार परमात्मा किसी को बुरा नहीं बनाता। व्यक्ति का भ्रमित मन ही उससे बुरे कर्म करवाता है,उसकी आत्मा नहीं।

एक दीपक जलता है, उस प्रकाश में चाहे तो कोई व्यक्ति धर्म ग्रन्थ पढ़ ले या जुआ खेल ले । प्रकाश तो समान रूप से ही मिल रहा है। यह तो कर्म करने वाले पर निर्भर है और इसी के अनुसार ही उसे सज़ा या इनाम भी मिलता है।

आध्यात्मिक सूक्ति

यदि तुम पवित्र वस्तुओं के बारे में सोचते हो तो तुम पवित्र बन जाओगे। यदि तुम्हारा हृदय प्रेम से हमेशा भरपूर है तो घृणा प्रवेश नहीं कर सकती।

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