छुआछूत एक अभिशाप

छुआछूत

भारत में सबसे बड़ा लोकतंत्र है और कई जातियों और धर्मों में विभाजित । छुआछूत भारत के हिंदू समाज से जुडी हुई एक बहुत ही गंभीर समस्या है।

छुआछूत हमारे देश के लिए एक ऐसी बीमारी है जो दूसरी समस्याओं को पैदा करती है। छुआछूत दीमक की तरह होती है जो हमारे देश को अंदर से खोखला कर रही है।

हमारे देश में अनेक समस्याएँ हैं लेकिन छुआछूत बहुत ही भयंकर और घातक सिद्ध होने वाली समस्या है। किसी विद्वान् ने कहा था कि छुआछूत इंसान और भगवान दोनों के प्रति एक पाप है।

छुआछूत एक ऐसा कलंक है जिससे हमारा सिर शर्म से झुक जाता है। डॉ भीमराव अंबेडकर ने कहा था कि मेरा कोई अपना देश ही नहीं है क्यूंकि मेरे देश में ही हमारे साथ जानवरो से भी ज्यादा गलत व्यवहार किया जाता है।

छुआछूत का अर्थ :

छुआछूत का अर्थ होता है- जिसे स्पर्श करने योग्य न मन जाए। जब किसी तरह के व्यक्ति के समूह या समुदाय को अस्पर्शनीय माना जाए या उसके हाथ की छुई हुई किसी भी वस्तु को कोई नहीं खाता उसे छुआछूत कहते हैं।

उन लोगों के साथ कोई भी मिलजुल कर नहीं रहता और न ही उनके साथ कोई खाना खाता है।

जब लोगों निचला समझ कर निचली जाति का काम करवाया जाता है उन्हें अछूत कहते है।

प्राचीनकाल में महाराजाओं के द्वारा किसी व्यक्ति के व्यवसाय को देखकर ही उसके धर्म की स्थापना की गई थी। उस समय पर हर किसी ने अपने धर्म को खुद चुना था।

ब्राह्मण लोगों को शिक्षा देते थे, क्षत्रिय देश और समाज की रक्षा किया करते थे।वैश्यों का काम व्यापार और वाणिज्य की देखभाल करना और शूद्रों का काम ऊपर की तीन जातियों की सेवा करना था।

प्राचीनकाल में एक ही परिवार के लोग अलग-अलग काम करते थे फिर भी वे खुशी से रहते थे। उन लोगों में उंच-नीच का कोई भेदभाव नहीं था।सभी में समान भाव झलकता था। इकट्ठे बैठकर एक दूसरे से बातें करते और खाना खाते थे

भारत के अछूत लोग :

हमारे भारत में हिंदू वर्ण-व्यवस्था के अनुसार चार जातियाँ हैं- ब्राह्मण, क्षत्रिय, सैनिक, शुद्र आदि। जो लोग हरिजन जाति मतलब दबी हुई जाति के होते हैं उन्हें अछूत कहते हैं।

अछूत लोगों को हिंदू की वर्ण-व्यवस्था की जातियों से अलग माना गया हैं। अछूत लोगों को अलग कर बहिष्कृत जाति का व्यक्ति माना जाता है।

अछूतों को हिंदू की जाति व्यवस्था में नहीं गिना जाता है। अछूत वर्ण एक अलग पांचवां वर्ण स्थापित किया गया है।

पुरातन समय में जो लोग गलत या घटिया स्तर का काम करते थे या निचली जाति के लोग जो नौकरों का काम करते थे ऐसे लोग अपराधी होते थे। जिन लोगों को छूत की बीमारी होती थी उन लोगो को देश से बाहर रहना पड़ता था।

जो लोग सभ्य होते थे वो लोग उन लोगों को ही अछूत कहते थे । फिर ऐसे लोगों से दूसरों को सुरक्षित रखने के लिए उन्हें राज्य से बाहर निकाल दिया जाता था क्योंकि यह बीमारी किसी को भी छूने से हो जाती थी।

उस समय पर छूतकी बीमारी वाले लोग दूसरे लोगों के लिए जबरदस्त हानिकारक होते थे।

इस बीमारी का इलाज न होने के कारण छूत वाले लोगों को दूसरे लोगों को स्वस्थ रखने के कारण उस राज्य से बहुत दूर भेज दिया जाता ताकि यह बीमारी किसी और को न हो सके। छुआछूत एक तरह का दंड होता थाजो उन लोगों को दिया जाता था।

जो व्यक्ति राज्य के बनाए हुए कानूनों को तोड़ता था और समाज की व्यवस्था में एक बाधा पैदा करता था।जो लोग अछूत लोगों से संबंध रखते थे उन्हें दलित कहा जाता है।

उन्हें इस नाम से इसलिए बुलाया जाता है क्योंकि जो लोग अछूत लोगों से संबंध रखते थे उन्हें भी अछूत ही माना जाता है।

सफाई, चमडा,स्वच्छता, मृत शरीरों को हटाने वाले लोगों को अछूत माना जाता है।

छुआछूत को दूर करने के प्रयत्न :

छुआछूत को एक बुराई के रूप में समाज ने मान लिया है जिसको दूर करने के लिए प्राचीनकाल से ही प्रयत्न किये जा रहे है।

बहुत से महापुरुषों ने छुआछूत के खिलाफ आवाज उठाई लेकिन फिर भी यह समस्या वैसी की वैसी बनी रही। महात्मा बुद्ध ने इसके खिलाफ सशक्त आवज उठाई थी।

रामायण को आदर्श बनाकर इस भेदभाव को ख़त्म करने का प्रयत्न किया गया। उन्हें भगवान श्री राम के गुहराज, शबरी और भीलों के संग मिलने और मेल-मिलाप की बातें बताकर समझाई गयीं।

सबसे पहले तो दयानंद जी ने छुआछूत को खत्म करने की जिम्मेदारी ली थी।

उन्होंने तो मूल हिंदुओं को हिन्दुओं को बनाकर उन्हें अछूत कहकर गले से लगा लिया था।

आर्य समाज में भी जबरदस्त प्रयत्न किया और अछूतोद्धार शब्द का प्रयोग किया था। उन्होंने खुद हरिजन बस्ती में रहने का निश्चय किया थे और रहे थे जिसका अर्थ है भगवान का प्यारा भक्त।

हरिजन में रहने वाले लोगों के लिए भीम राव अंबेडकर ने बहुत ही उत्थान काम किया था उसे कभी भी भुलाया नहीं जा सकता है।

युवाओं के विचारों में बदलाव हो रहें है और सभी में धीरे-धीरे परिवर्तन किये जा रहे हैं।

आधुनिक शिक्षा और वैश्वीकरण से भी युवाओं की सोच काफी हद तक बदल चुकी है।सभी समाज में खुलकर रह रहे है ।

जब संविधान का निर्माण हुआ तो यह निश्चित किया गया था कि समाज में फैली बुराईयों का उन्मूलन करने के लिए पिछड़ी जातियों के उत्थान में संविधान में प्रावधान किये जायेंगे।

इसी को ध्यान में केंद्रित रखते हुए संविधान में अनुच्छेद 17 बना दिया गया था।

अछूतों के साथ भेदभाव :

भारत के दलितों के साथ एन.सी.डी.एच.आर. के अनुसार भेदभाव होता है। जो अछूत लोग होते है उनके साथ कोई भी बैठकर भोजन नहीं कर सकता है।

किसी अलग जाति के सदस्य से कोई भी शादी नहीं कर सकता था। गांवों में जो चाय की दुकानों पर अछूत लोगों के लिए अलग बर्तन होते हैं।

अछूत लोग मंदिरों में नहीं जा सकते। अछूत लोगों को सार्वजनिक रास्ते पर चलना मना होता है।

अछूत बच्चों को स्कूलों में अलग बैठाया जाता है। अछूतों के लिए होटलों में बैठने के लिए और खाने के लिए अलग बर्तनों की व्यवस्था होती है।

अछूतों के लिए गांवों के कार्यक्रम या त्यौहारों में बैठने और खाने के लिए अलग व्यवस्था होती है।जब अछूत लोग अपना काम करने से मना कर देते हैं तो समाज से उनका बहिष्कृत कर दिया जाता ।

उच्च जाति के लोगों के सामने अछूत लोगों को छाता लगाना और चप्पल पहनना मना होती है।

अछूत लोगों के लिए शमशान भी अलग बनाया गया है। उनसे कोई अन्य जाति का सदस्य दोस्ती या ज्यादा संपर्क नहीं कर सकता।

वर्तमान युग में छुआछूत के बने रहने के कारण :

आज भी हमारे समाज में जाति और जन्म के बीच आज भी भेदभाव किया जाता है। आज भी हम देख सकते हैं कि गाँव और कस्बों के लोगों में छुआछूत का व्यवहार किया जाता है।

आज के युग में भी अछूत लोगों को पनघटों और मंदिरों में जाने से रोका जाता है। उनके रहने के लिए जगह भी अलग दी जाती है।

किस प्रकार अब तक ये कुप्रथा बनी हुई है? क्या शहरों में जो लोग कूड़ा बीनते हैं उन लोगों को भी अछूतों की नजर से देखा जाता है? क्यों ?।

बुराई हिंदू समाज के लोगों में बहुत ही गहराई तक पहुंच गई है इसी वजह से आजादी के बाद भी आज तक ये समस्या अलग-अलग तरह से समाज में बनी हुई है।

अब के समय में जो लोग छुआछूत में विश्वास रखते हैं सरकार द्वारा उनके खिलाफ कानूनी कार्यवाई की जाती है क्योंकि छुआछूत के खिलाफ कानून ने सख़्त नियम बनाए हैं।

ऐसा करने से भी छुआछूत की समस्या खत्म नहीं हो रही है। इस प्रथा के अब तक बने रहने का सबसे बड़ा कारण हमारे देश में उचित शिक्षा का न होना है।

जो लोग अछूत जैसी सोच रखते हैवे लोग आज भी अशिक्षित और रूढ़ग्रस्त समझे जाते हैं ।उनके विचारों के पास अभी तक ज्ञान का प्रकाश नहीं पहुँचा है। सभी को भगवान ने एक जैसा बनाया है – एक जैसी चमड़ी लगाई है। जब भगवान ने मनुष्य को बनाते वक्त कोई फर्क नहीं किया तो हमे भी नहीं करना चाहिए।

हम लोग प्राय देखते हैं कि जो हरिजन लोग शिक्षा को प्राप्त करते हैं वे अपनी आर्थिक स्थिति को सुधार लेते हैं और उन्हें अछूत नहीं माना जाता है।

अछूतों की आर्थिक स्थिति भी कमज़ोर होना छुआछूत की समस्या का एक बहुत ही मुख्य कारण रहा है।

छुआछूत के दुष्परिणाम :

दुनिया में छुआछूत के सामाजिक, राजनितिक, धार्मिक और सांस्कृतिक दुष्परिणाम बहुत प्रचलित रह चुके हैं।

आधुनिक युग में हमारा देश आगे तो बढ़ रहा है पर फिर भी कही न कहीं छुआछूत की समस्या के कारण से देश के एक बहुत बड़े हिस्से को सुख-सुविधाओं से अभी तक अवगत नहीं कराया है।

जो हरिजन गाँव में रहते हैं उनके पास अभी भी जीवन को जीने के लिए सुविधाएँ बहुत ही कम हैं। हमारे देश में छुआछूत भी गरीबी का एक कारण माना गया है।

जब तक अछूत लोगों को समाज की मुख्यधारा में स्थान नहीं मिल जाता तब तक देश का समुचित विकास कभी नहीं हो सकता है।

हमारा देश कई साल पहले आजाद हो चुका है लेकिन हरिजन वर्ग आज तक राजनितिक, आर्थिक और सामाजिक , रूप से आजाद नहीं हो पाया है।

हम लोगों से समय यह मांग करता है कि छुआछूत को समाप्त कर दिया जाये।

प्राचीनकाल में लोग यह मानते थे कि अगर अछूत लोग उन्हें छू लेते या फिर उनकी परछाई भी उन पर पड़ जाती थी तो वे अपवित्र हो जाते थे और दोबारा से पवित्र होने के लिए उन्हें गंगा जल से स्नान करना पड़ता था।

उपसंहार :

आज के युग में भी छुआछूत की समस्या जो हमारे लोगों के बीच की दीवार बनी हुई है उसे हटाना चाहिए ।

आज के समय में भी कुछ लोग अपने-आप को दूसरों से श्रेष्ठ, उच्च और योग्य समझते हैं। हरिजन वर्ग के लोगों पर आज भी अत्याचार किया जाता है उनके साथ जानवरों से भी व्यवहार किया जाता है।

बुराजब चुनाव होते हैं तो लोगों को अपने मत को स्वंय चुनने का अधिकार नहीं दिया जाता है। आज भी बंधुआ मजदूर के रूप में बहुत से लोग अमीरों के दास बने हुए हैं।

हमारी सरकार ने भी अछूतों की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए अनेक प्रयास किये है और कर रही है।

जो लोग अछूत माने जाते हैं उन्हें भी अपनी तरफ से कुछ प्रयास करने चाहिए। जब तक वे शिक्षित नहीं हो जाते तब तक उनका सुधार होना असंभव है।

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