उचित अवसर- एक पूर्ण सन्त अपनी मौजवश में बैठे थे और खेत की मिट्टी को गूंदकर उसके छोटे छोटे घर बना रहे थे। संयोग से एक राजा और उसके वज़ीर उधर से गुज़र हुआ।
राजा श्रद्धावान था, उसने संत जी से पूछा कि आप यह क्या कर रहे हैं? संत जी ने जवाब दिया। कि मैं स्वर्ग के महल बना रहा हूँ।
राजा ने पूछा कि कितने में दोगे? संत जी ने कहा कि अकेली कोठी के पाँच सो रुपये, जिसके आगे आंगन है यह हज़ार रुपये का और जो दो मंजिला मकान है वह पाँच हज़ार का है।
राजा ने वज़ीर से परामर्श किया कि यदि इनसे कुछ जगह खरीद ली जाए तो कैसा रहेगा? वज़ीर ने कहा कि इन फकीरों की क्या सुननी, ये तो मिट्टी के घर बना रहे हैं।
स्वर्ग के महल तो स्वर्ग के ही होते हैं। फिर भी यदि आपकी इच्छा हो तो पाँच सौ वाली एक छोटी कोठी खरीद लो। पाँच सौ रुपये देकर मिट्टी का वह मकान लेकर राजा अपने महल में लौट आया।
रात को स्वप्न में राजा क्या देखता है कि उसकी मृत्यु हो गई है और वह स्वर्ग में पहुँच गया है। वहाँ खूब महल सजे पड़े हैं, बड़े बड़े आंगन वाली और दो दो मंज़िल वाली अनेकों इमारतें बनी पड़ी हैं। वह आगे बढ़ता गया.
तभी एक आदमी ने उसे एक छोटी सी कोठी के आगे रोकते हुए कहा कि आइये राजन, यही आपकी कोठी है। • राजा ने गौर से देखा तो यह हूबहू उसी मकान जैसा नकशा था जो उसने सन्त जी से पाँच सौ रुपये में खरीदा था। यह देख राजा को बहुत कौतूहल हुआ।
भोर होते ही राजा वज़ीर को लिए बिना अकेला ही उन सन्त जी के पास पहुँचा और बहुत सारी धन राशि देते हुए कहने लगा कि मुझे इतने मकान और दे दो।
संत जी ने कहा- राजन्! वह समय तो अब निकल गया। वे – मकान जो कल बनाए थे वे सब कल ही खत्म हो गए। जिसने अवसर से लाभ उठा लिया वही बुद्धिमान है।
आपने वज़ीर की सलाह पर चलकर अपनी श्रद्धा को कमज़ोर कर दिया। इसलिए अब सोचने से तो कोई लाभ न होगा।
इसलिए वक्त के सन्त सद्गुरु के दर्शन, सत्संग व सेवा का जब भी सुअवसर प्राप्त हो, पूरा पूरा लाभ उठा लेना चाहिए। वास्तव में यही जीव की अपनी पूँजी है।
अगर समय को सलाह मशवरों में ही व्यर्थ गंवा दिया तो • सिवा पछताने के कछ भी हासिल न होगा।