आत्मा पृथ्वी पर बार-बार क्यों आती है ?
उत्तर -आत्मा अपने मूल स्थान अर्थात् परमात्मा से मिलने के लिए व्यथित एवं बेचैन रहती है। कोई भी इच्छा भौतिक या आध्यात्मिक यदि वह निष्कपट, सच्ची एवं तीव्र हो तो अवश्य पूर्ण होगी।
निश्चय ही हमारी चाहत में कोई कमी ज़रूर होती है, जिससे आत्मा पृथ्वी पर वापस आती है, मोह और मायावश खिंचती जाती है। आत्मा तब ही मुक्ति प्राप्त कर सकती है जब यह सभी इच्छाओं और कामनाओं को त्याग दे ।
इसी प्रकरण में एक उदाहरण है। ऐसा कहा गया है कि शिवरात्रि की रात को व्यक्ति जो इच्छा रखे वह पूरी होती है। अगर वह सच्चे दिल से भगवान् शिव और माता पार्वती के चरणों में प्रार्थना करे ।
एक गरीब महिला थी उसने कहा- हे प्रभु! मेरी यह पत्थर की पीसने वाली चक्की को सोने की चक्की में बदल दो ताकि में अपनी गरीबी से छुटकारा पा जाऊँ। वह लगातार यह कहती रही। भगवान् शिव अपने भक्तों को आशीर्वाद देने पृथ्वी पर आये
लेकिन उनके पहुँचने से दो क्षण पहले उसका विश्वास टूट गया। उसने दुःखी होकर घृणा से कहा हे प्रभु! यदि तुम इसे सोने में नहीं बदल सकते तो लोहे में ही बदल दो। उसी समय वैसा ही हो गया। वह पत्थर लोहे में बदल गया।
॥ दोहा ॥
पलटू पारस क्या करे, जो लोहा खोटा होय । सतगुरु सब को देत हैं, लेता नाहीं कोय ॥
इसीप्रकार हमारी अवस्था है। हम निरन्तर आध्यात्मिक प्रयत्न नहीं करते। हम संसार की मोह-माया में मोहित हो जाते हैं।
जो हमें बार-बार पृथ्वी पर आने के लिए विवश करते हैं। अन्दर से तो हम विषय-वासना और इन्द्रिय सुखों की चाह करते हैं और बाहर से कहते हैं कि मोक्ष क्यों नहीं प्राप्त होता?
हम परमात्मा को धोखा नहीं दे सकते। अपने हृदय की गहराइयों में झांककर देखें क्या हमारी लालसा सच्ची है और हमारे प्रयत्न विश्वासपूर्ण हैं? यदि नहीं तो हमारी आत्मा बार-बार पृथ्वी पर आने के लिए बाध्य है।