कविता – अमृत नाम देकर
अमृत नाम देकर जीव को ले जाते निजधाम ।
केवल पूर्ण सतगुरु ही हैं जो करते सरल मुकाम।
मुक्त करते यम के त्रास से जो लेवे दामन थाम ।
इन जैसा उपकारी न कोई इनकी महिमा महान।
2. जिस जिस जीव ने पूरे सतगुरु की टेक है धारी।
कलह कल्पना व चिंताएं मिट गईं उसकी सारी।
मन को कर के काबू जाए वचनों पर बलिहारी।
करे शुक्राना प्रभु का हरदम रहता सदा आभारी ।
3. गुरु से लेकर ज्ञान जो विषयों से चित्त को हटावे ।
करे भरोसा मालिक का मन उसको न भरमावे ।
सतगुरु के सिवा जो सुरत को न कहीं अटकावे।
करके किनारा दुनिया से वह परम पद को पावे ।
4. सतगुरुदेव ही अखुट भण्डारी हैं सच्चे ज्ञान के ।
उनकी किरपा से ही हटते परदे मोह अज्ञान के।
चले जो सत्य की राह पर दृढ़ निश्चय ठान के।
पाए हर घट में वह दर्शन श्री सतगुरु सुजान के
5. जिसने सत्पुरुषों से दिल का नाता जोड़ लिया।
उसने माया मोह से अपने मुख को मोड़ लिया ।
हर शै और हर घट में उसने प्रभु प्रभु को पा लिया
वही सफल है इन्सां जग में जो संतोष से है जिया।