॥ कविता ॥ – अनहद नाद
गुरु किरपा से अनहद की जिसने सुनी आवाज़ ।
सहजे ही सब हो गए उस के पूर्ण काज ॥
माया नहीं सकती उस शख्स का कुछ बिगाड़ ।
सतगुरु के शब्द की जिस ने ली है आड़ ॥
कोई कोई विरला प्रेमी ही अनहद नाद सुन पाए ।
कर विश्वास जो गुरु वचनों पे स्वयं को है मिटाए ॥
मौज में चलता हुआ मुश्किल राहें पार कर जाए ।
जोड़ शब्द से नाता सच्चे आनन्द को वह पा जाए ॥
सच मानो तो सफल है इस जग में उसी का आना ।
नाम सिमर कर जिसने अपने मकसद को पहचाना।
मानुष जन्म की कदरो कीमत को जिसने है जाना ।
पा लिया उसने मालिक से नाम का सच्चा खज़ाना ॥
सतगुरु ने है जिसको अनहद का नाद सुनाया ।
उसने फिर आवागमन का सब फंद है मिटाया ।
काल माया से आज़ाद हो वह सच्चे सुख में समाया।
कर अभ्यास जिसने सुरति को सूक्ष्म है बनाया ॥
आठों पहर अनहद नाद के बाजे जिसके हैं बजते।
अंतरात्मा की आवाज को वे भाग्यशाली ही सुनते ॥
पहुँच दसवें द्वार जो अमृतरस का पान हैं करते ।
सतगुरु की किरपा से उनके दिव्य चक्षु हैं खुलते ॥
आठों याम दशम द्वार से अमृत का झरना है बहता।
सुरति को जो खींच ले अंदर वही मज्जन है करता ॥
मिटाकर अपनी हस्ती को जो मालिक से जा मिलता।
उसके भाग्यों का क्या कहना बन अमरफूल वह खिलता॥
सद्गुरु द्वारा प्रदान किए गए शब्द के अभ्यास से जीव नाम के धन का धनी बन जाता है। फिर उसे किसी के भी प्रकार की कोई कमी महसूस नहीं होती। प्रभु के सुमिरण से कोई रुकावट नहीं आती और आत्मा हरदम सचेत रहती है। वह अनहद शब्द का रसपान करती हुई सदा आनन्द में विचरण करती है।