हरिवंश राय बच्चन कविता कोयल
अहे, कोयल की पहली कूक ! अचानक उसका पड़ना बोल, हृदय में मधुरस देना घोल, श्रवणों का उत्सुक होना, बनना जिह्वा का मूक ! कूक, कोयल, या कोई मंत्र, फूँक जो तू आमोद-प्रमोद, भरेगी वसुंधरा की गोद ? कायाकल्प - क्रिया करने का ज्ञात तुझे क्या तंत्र ? बदल अब प्रकृति पुराना ठाट करेगी नया-नया श्रृंगार, सजाकर निज तन विविध प्रकार, देखेगी ऋतुपति - प्रियतम के शुभागमन की बाट । करेगा आकर मंद समीर बाल-पल्लव-अधरों से बात, ढकेंगी तरुवर गण के गात नई पत्तियाँ पहना उनको हरी सुकोमल चीर ।
- हरिवंश राय बच्चन कविता – कोयल
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एक सुंदर कविता,जिसके एक-एक शब्द बार-बार पढ़ने को मन करता है
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