हउमै की आग में जिसने स्वयं को है जारा- कविता

1. हउमै की आग में जिसने स्वयं को है जारा

खोकर सुख व चैन फिरता वह मारा मारा ।

मालिक के वचनों पर जिसने सर्वस्व वारा ।

छुटकारा पा गमों से जीवन उसने सँवारा ।

2. तलबगार है अगर तू सतगुरु की मेहर का ।

तो देना होगा दिल से सारी हउमै को मिटा ।

खुशियों भरा जीवन जीना चाहे गर सदा ।

हटा विषयों से चित्त प्रीत गुरु शब्द से बढ़ा ।

3. सतगुरु से सीख युक्ति कर ले हउमै का नाश ।

सहजे ही हो जाएगा हृदय दिव्य प्रकाश ।

मिटा कर भरम भुलेखे कर सत्संग में वास ।

शीतल शांत हो जा पाके गुरु का आशीर्वाद ।

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