सेवा-समर्पण का पर्व है गुरु पूर्णिमा

गुरु पूर्णिमा

गुरु पूर्णिमा का सनातन परम्परा में गुरु का बहुत महत्व है। गुरु का आशीर्वाद ही कल्याणकारी एवं ज्ञानवर्धक समझा जाता है। चारों वेदों के व्याख्याता व्यास ऋषि थे। हमें वेदों का ज्ञान देने वाले व्यास जी ही हैं। इसी कारण वे हमारे आदि गुरु हुए।

विद्वानों का कथन है कि व्यास जी की स्मृति को ताजा रखने के लिए हमें अपने-अपने गुरुओं को व्यास जी का अंश मान कर उनकी पूजा करनी चाहिए। यह परंपरा आदि काल से चली आ रही है।

देवताओं एवं ऋषि-मुनियों के भी गुरु हुए हैं। गुरु को ईश्वर से मिलाने का माध्यम तो समझा ही जाता है अपितु कई जगह उसके महत्व को बढ़ाकर प्रस्तुत किया जाता है।

उदाहरणार्थ कहा जाता है:- गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काको लागूं पायं, बलिहारी गुरु आपने, जिन गोविंद दियो बताय।’ गुरु के महत्व को दर्शाती पंजाबी कहावत है ‘शाह बिना पत नहीं, गुरु बिना गत नहीं।

वैसे तो उम्र भर कोई न कोई आदमी का मार्गदर्शक रहता है जैसे बचपन में मां या घर के बड़े-बूढ़े, स्कूल में अध्यापक परन्तु जब वह जीवन की कठिनाइयों सच्चाइयों से दो-चार होता है तो उसे एक ऐसे मार्गदर्शक की आवश्यकता पड़ती है जो उन कठिनाईयों से पार पाने में उसका सहयोग कर सके एवं उसके जीवन पथ पर बढ़ने हेतु मार्गदर्शक बन सके तथा कुछ ऐसा भी हो जो उसे जीवन सफल बनाने का मूलमंत्र बन सके।

दूसरे शब्दों में वह संसार रूपी भवसागर को पार कर ईश्वर के पास पाप-मुक्त होकर सुर्खरू जा सके एवं उसकी इच्छा यह भी है कि वह बार बार जन्म लेने के झंझट से छुटकारा पा सके तथा मुक्ति पा सके।

कुछ इन्हीं उलझनों को सुलझाने के इरादे से वह सच्चे गुरु की तलाश में निकलता है। कई लोग किसी से कोई हुनर सीखते हैं तो भी वह इस परंपरा का निर्वाह करते हैं।

कई बार तो परिवार द्वारा पहले से बनाए गए गुरु ही अपना लिए जाते हैं परन्तु मानव को अपने लिए अलग से गुरु चुनने की छूट रहती है।

पंजाबी में ही कहावत है ‘पानी पीये पुण के, गुरु धारिए चुण के’। जीवन भर किए जाने वाले संस्कारों में गुरु का स्थान सर्वोपरि रहता है। कई लोग अपनी व्यस्तताओं में से समय निकाल कर गुरुओं के आश्रमों में जाते रहते हैं परन्तु जो नहीं जा पाते उनके लिए गुरु पूर्णिमा का दिन विशेष तौर पर गुरु सेवा के लिए निश्चित है।

कुछ लोग गुरु जी का सान्निध्य पाने के लिए गुरुओं के पास जाते हैं अपितु जो नहीं जा पाते वे घर पर गुरु सेवा निकाल कर एवं पूजा-आराधना कर गुरु का स्मरण कर लेते हैं।

इस तरह गुरु का सान्निध्य पाने एवं उनके दिखाए मार्ग पर चलने तथा उनके मुखारविंद से निकले वचनों को गुरु कृपा का प्रसाद समझ अपने जीवन में धारण करने का दिन है गुरु पूर्णिमा ।

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