सूरज पर कविता
सूरज दादा छुपे हो कहां, जल्दी बाहर आओ जी ।
चमचमाता चेहरा अपना, आज हमें दिखलाओ जी।
धूप नहीं आई तो देखो, कैसा हाल हुआ अपना ।
बाहर के भ्रमण का अब तो, टूट गया स्वर्णिम सपना ।
गजक-रेवड़ी खाएं घर में, और चबाएं मूंगफली ।
अदरक वाली चाय पिएं सब, मन लुभाए गुड़ की डली।
सूरज दादा आसमान में, खोलो जी अपनी खिड़की।
सर्दी रानी मार रही है, शीतल लहर की फिर झिड़की ।
स्कूल जाना मुश्किल हुआ है, भाती गर्म रजाई अब ।
आग जलाकर करें गुजारा, गर्म जलेबी भाई अब ।
छोड़ घरौंदा अपना दादा, धरती पर मुस्काओ जी।
चमचमाता चेहरा अपना, आज हमें दिखलाओ जी।
-गोविंद भारद्वाज, अजमेर