साइकिल पर कविता || Poem on Bicycle

साइकिल पर कविता

देकर पिता जी एक सहारा,

देखें वे एक नजारा।

पीछे चल कर दिशा बताते,

संतुलन की बात समझाते ।

एक भरोसा, एक विश्वास,

रखो बेटी तुम अपने पास।

दृढ़-अडिग साहस जगाते,

अधरों पर मुस्कान हैं लाते ।

बोलें पिता जी बिटिया रानी,

हो गई अब तो बड़ी सयानी ।

संकल्प, धैर्य का यह खेल,

साइकिल से झट खाए मेल।

तेज गति से दौड़े साइकिल,

रोमांच भरे यह तो पल-पल ।

पैडल मार यह बिटिया रानी,

चालक की छोड़े एक निशानी ।

आगे-आगे बढ़ते जाओ,

इस पर चढ़ कर दौड़ लगाओ।

वाहन यह तो बड़ा निराला,

बीच में इसके जड़ा है ताला।

– राम प्रसाद शर्मा

जुदा सारे जहान से होती है आशिकों की राह

धर्म और आस्था

Leave a Comment