प्रेमानंद जी महाराज का जीवन परिचय | Premanand Ji Biography
यों तो प्रत्येक देश में समयानुसार ऐसे महापुरुषों का अवतरण होता ही रहता है; परन्तु भारतवर्ष को यह विशेष गौरव प्राप्त है। इस देश में सत्पुरुषों के आविर्भाव की परम्परा शताब्दियों पुरानी है। परम पुरातनकाल से ही हमारा भारत आत्म-ज्ञान तथा भक्ति का बृहत् स्रोत रहा है।
इसी पवित्र भूमि पर ही वेद-शास्त्रों के रचयिता दिव्य ज्ञान का प्रकाश फैलाने वाले ऋषियों ने जन्म लिया। सन्त महात्मा, ज्ञानी, योगी, सिद्ध-साधक तथा भक्तजनों ने अवतार धारणकर ज्ञान-भक्ति की गंगा बहाई तो इसी धरा पर प्रकट होकर श्रीकृष्णचन्द्र जी महाराज, श्री रामचन्द्र जी महाराज, महर्षि गौतम, श्री वेदव्यास जी तथा ब्रह्मर्षि वशिष्ठ जी ने इसी भारत भूमि पर जन्म लेकर भक्ति के अनुपम रहस्य – बताकर इसे गौरवान्वित किया।
ऊपर जिन महान् व्यक्तियों अथवा सन्त-महापुरुषों के नामों का उल्लेख हुआ है, वे सब भारत में ही विभिन्न युगों में प्रकट हुए। सत्ययुग, त्रेता, द्वापर तथा पुरातन कलियुग इस अमरसत्य के साक्षी हैं। आत्म- ज्ञान तथा भक्ति-सम्पदा का बृहत् भण्डार होने के कारण समस्त संसार यहीं से ज्ञान-लाभ करता रहा है।
जगत के तथाकथित सुधारकों अथवा सन्त-महापुरुषों के नाम तथा रूप चाहे भिन्न रहे हों, किन्तु ध्येय सबका एक ही रहा है।
प्रथम पादशाही श्री गुरुनानकदेव जी महाराज से लेकर श्री गुरुगोबिन्द सिंह जी महाराज तक दस पादशाहियों ने भी इसी सारतत्त्व भक्ति का उपदेश दिया है। यही भक्ति का उपदेश श्री रामचन्द्र जी महाराज ने भरत जी को, पुनः अयोध्यावासियों को किया है।
तुलसीकृत रामायण के उत्तरकाण्ड में इसका विशद् वर्णन मिलता है। अन्य देशों व जातियों में भी महापुरुषों तथा नबियों ने यही कहा है। बाईबल में हज़रत यीशु मसीह का कथन है- “यह न समझो कि मैं पुरानी व्यवस्था और नबियों के लेखों का लोप करने आया हूँ, मैं लोप करने नहीं वरन् पूर्ण करने आया हूँ।”
सन्त महापुरुष मानवता की विह्वल पुकार सुनते हैं। जीव को परमार्थ-पथ दर्शाकर ब्रह्म का साक्षात्कार करने का आदेश देते हैं। वे भक्ति योग के द्वारा ब्रह्म-साक्षात्कार करने के आदर्श को स्थापित करते हैं।
इसी सिद्धान्त व इसी ध्येय को लेकर पीड़ित मानवता की विह्वल करुण पुकार सुनकर परिस्थिति व देश काल के अनुसार श्री प्रेमानंद जी महाराज जी महाराज ने अवतार धारणकर जन-जन को श्री राधा नाम का अमृत पिलाया तथा वेदना से समस्त संसार को विमुक्त किया और इस धरती के भाग्य जगाए।
असली नाम | अनिरुद्ध कुमार पांडे |
उम्र | 60 साल (लगभग ) |
पिता का नाम | शंभू पांडे जी |
माता का नाम | श्री रमा देवी जी |
जन्म स्थान | कनपुर , उत्तर प्रदेश |
वैवाहिक स्थिति | अविवाहित |
अन्य नाम | प्रेमानंद जी महाराज |
धर्म | हिन्दू |
जाति | ब्राह्मण |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
वृंदावन वाले प्रेमानंद जी महाराज का जीवन परिचय ,शिक्षा ,लाइफ
श्री प्रेमानंद जी महाराज जी राधावल्लभ संप्रदाय के महान संत हैं । पूज्य प्रेमानंद महाराज का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ उनका नाम अनिरुद्ध कुमार पांडे था । महाराज जी का जन्म उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर के आखिरी गांव सरसौल ब्लॉक में हुआ था।
इनके पिता का नाम शंभू पांडे था। इनके दादा एक सन्यासी थे ।इनकी माता बहुत ही धर्म परायण थी। कुछ समय बाद उनके पिताजी ने भी संयास ले लिया था ।महाराज जी के माता-पिता के हृदय में संतों के प्रति बहुत आदर सत्कार था और संतों की बहुत प्रेमभाव से सेवा करते थे।
महाराज जी के घर का वातावरण बहुत ही अध्यात्मिक और भक्ति से भावपूर्ण था।
महाराज जी की बचपन से ही संसार के विषयों के प्रति वैराग्य तथा अध्यात्म की और प्रवृत्ति थी।
महाराज जी के बड़े भाई संध्या के समय भागवत पढ़ते थे जिससे पूरा परिवार बैठकर सुनता था।
कहते हैं महाराज जी ने छोटी उम्र में ही भागवत चालीसा का पाठ शुरू कर दिया था और पांचवी कक्षा तक पहुंचते-पहुंचते उन्होंने धार्मिक पुस्तक सुखसागर को पढ़ना शुरू कर दिया था।
महाराज जी बचपन से ही जीवन के उद्देश्य के ऊपर सवाल उठाते थे वह हमेशा पूछते थे कि माता-पिता का प्रेम स्थाई है या अस्थाई ।अगर अस्थाई है तो इतना मोह क्यों?
यह भी प्रश्न उनके मन में रहता था कि क्या स्कूल की विद्या से उन्हें अपने जीवन के लक्ष्य की प्राप्ति हो सकती है या नहीं ।अगर नहीं हो सकती तो इसे पढ़ने का क्या फायदा ।
ऐसे बहुत से प्रश्न उनके मन में उठते थे। कुछ समय बाद उन्होंने श्री राम नाम का जप और श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी का जप करना शुरू कर दिया था।
नौवीं कक्षा तक पहुंचते-पहुंचते उन्होंने यह सोच लिया कि अब उन्होंने अध्यात्मिक रास्ते की तरफ चलना है। यह बात उन्होंने अपने माता पिता को बताई कि वह अध्यात्मिकता की और जाना चाहते हैं। फिर उनकी मां ने कहा कि घर को छोड़कर थोड़ी भगवान मिलते हैं घर में रहकर ही भगवान की आराधना करो। महाराज ने कहा नहीं हमें तो बाबा बनना है सन्यास लेना है। तब उनकी माताजी ने सोचा कि किसी संत से इन्होंने इस बारे में सुन लिया होगा इसी कारण ऐसा कह रहे हैं।
श्री हित प्रेमानंद गोविंद जी महाराज ने अपना घर 13 साल की उम्र में छोड़ दिया था। उन्होंने सन्यासियों से अपनी दीक्षा ली और सन्यासियों द्वारा उनका नाम पूर्ण आनंद ब्रह्मचारी रखा गया।
कुछ समय बाद प्रेमानंद जी महाराज जी ने सन्यास भी स्वीकार कर लिया था।महाराज जी का अधिकांश जीवन गंगा नदी के तट पर ही बिता था। वह सदैव गंगा जी के किनारे कहीं रहते थे। उन्होंने तन पर बहुत ही कम कपड़े धारण किए थे जितनी मर्जी ठंड पड़ती हो महाराज जी गंगा में दिन में तीन बार डुबकी अवश्य लगाते थे।
महाराज जी ज्यादातर उपवास ही रखा करते थे । महाराज जी बहुत दिनों तक भूखे प्यासे भी रहते थे ।भिक्षा में जो भी मिलता था वही ग्रहण कर लेते थे। वह भगवान की भक्ति में लीन रहते थे।
भगवान नाम का सुमिरन दिन रात किया करते थे ।कहते हैं सन्यास मार्ग में ही प्रेमानंद जी महाराज को भगवान शिव जी के भक्त हैं। श्री प्रेमानंद जी शिवजी जी के बहुत बड़े उपासक थे । शिव भगवान ही उनके इष्ट थे ।उन्होंने स्वयं बताया कि भगवान शिव की कृपा और प्रेरणा से ही वह श्री वृंदावन धाम आए थे।
श्री प्रेमानंद महाराज जी के मुखारविंद से
कहते हैं श्री महाराज जी एक दिन बनारस के पेड़ के नीचे बैठकर ध्यान कर रहे थे। तुलसी घाट में एक संत आए हमारे पास और उन्होंने कहा कि हनुमान प्रसाद विश्वविद्यालय में एक महीना रास का आयोजन श्री राम शर्मा अचार्य जी कर रहे हैं दिन में चैतन्य लीला और रात्रि में रासलीला का कार्यक्रम होगा।
अभी रासलीला आरंभ ही हुई थी कि उस संत ने कहा चलो रासलीला देखने चलते हैं। महाराज जी ने सोचा कि जैसे कोई गांव में रात्रि के समय रामलीला का प्रोग्राम होता है वैसा ही यह भी प्रोग्राम होगा । तो महाराज जी ने जाने के लिए मना कर दिया फिर उस संत ने कहा वृंदावन से रासलीला आई है आनंदमई होगी ।
महाराज ने कहा नहीं स्वामी जी आप देखिए जाकर हम नहीं जाएंगे।उस संत ने कहा महाराज जी हमारे कहने पर एक बार रासलीला देखने चलिए।
इतना हठ संत जी का देखकर महाराज जी ने कहा कि महादेव की यही इच्छा है तो चलो ठीक है चलते हैं। उस संत की प्रसन्नता के लिए महाराज जी रासलीला देखने चले गए वह दिन की चैतन्यलीला देखने गए थे।
जब वह चैतन्य ने लीला देखने गए तो उस संत महात्मा जी को रात्रि को कहना ना पड़ा। एक महीना रासलीला और चैतन्य लीला देखने के बाद तो महाराज जी के अंतःकरण में हाहाकार मच गया।
अब अंतःकरण में लगा जिएंगे कैसे ?
तो महाराज जी को लगा इनकी रासलीला तो होती रहती होगी। यदि हम इनकी सेवा करें तो रोज रासलीला का हमें सौभाग्य प्राप्त होगा
फिर महाराज जी ने बाबा जी से कहा कि हमें अपने पास रख लो हमारे पास कुछ भी पैसे नहीं है परंतु हम आपकी सेवा करेंगे। ताकि हम रासलीला देख पाए ।
बाबा जी ने कहा कि नहीं आप बस एक बार वृंदावन आओ देखना बिहारी जी तुम्हें छोड़ेंगे नहीं ।
बस फिर क्या था हमें लगन लग गई कि हमें वह हमने वृंदावन जाना है बस हमने वृंदावन जाना है सबसे पहले मन हुआ कि कैसा होगा वृंदावन ?
फिर जुगल किशोर जी हमारे पास संकटमोचन का प्रसाद लेकर आए। वह हमें अपने साथ अपने कुटिया ले गए और वहां पर उन्होंने हमें दाल रोटी खिलाई हमने उनसे पूछा कि बाबा क्या आप हमें वृंदावन लेकर जा सकते हो उन्होंने बोला हां जी लेकर जा सकते हैं ऐसा करो कि आप कल ही तैयारी कर लो वृंदावन जाने की गाड़ी बनारस से चित्रकूट
गाड़ी बनारस से सीधी नहीं जाती थी तो हमनें चित्रकूट से मथुरा की गाड़ी पकड़ी। गाड़ी में दो लोग गलत वार्तालाप कर रहे थे । फिर महाराज जी ने उनको समझाया की वार्तालाप वह करो जिससे तुम्हें आत्मिक सुख प्राप्त हो ।
इस प्रकार वह दोनों चुप कर गए और फिर वह महाराज जी से से पूछने लगे कि आप कहां जा रहे हो महाराज जी ने बताया हम वृंदावन जा रहे हैं ।तो उन्होंने पूछा वृंदावन में कहां? तो महाराज ने कहां पता नहीं बस वृंदावन ही जा रहे हैं ।तो वह बोले ठीक है आप हमारे साथ मथुरा में 1 दिन रहो तो महाराज जी उनके साथ फिर मथुरा में एक दिन रूके।
उसके बाद महाराज जी श्री वृंदावन धाम चले गए वहां पर उन्होंने अगले दिन सुबह यमुना जी में स्नान किया और फिर वह बांके बिहारी जी के दर्शन करने चले गए बांके बिहारी जी के दर्शन करते ही उनके नैत्रों से अश्रु की धारा प्रवाहित होने लगी उनका राधा कृष्ण के प्रति प्रेमभाव और विरह उत्पन्न हो गया।
उस एक महीने में उनके जीवन में बहुत बड़ा परिवर्तन हुआ जिससे उन्होंने भक्ति मार्ग को ग्रहण कर लिया।
श्री राधाकृष्ण रास लीला का उनके अंदर ऐसा गहरा प्रभाव पड़ा कि अब वह राधा कृष्ण के बिना एक क्षण भी नहीं रह सकते थे।
श्री राधा वल्लभ मंदिर में श्री महाराज जी राधा जी को ही निहारते रहते थे।
एक दिन वहां के स्वामी ने जब इनको देखा कि यह तो श्री राधा जी को ही निहारते रहते हैं तो उन्होंने महाराज जी को श्री हरिवंश नाम जपने के लिए कहा ।
शुरुआत में महाराज जी को श्री हरिवंश नाम जपने में संकोच हुआ और बाद में उन्होंने यह पाया कि यह नाम तो उनके अंदर अपने आप चल रहा है।
प्रेमानंद जी महाराज जी ने राधावल्लभ संप्रदाय में शामिल होकर शरणागति मंत्र ले लिया। कुछ दिनों बाद महाराज जी अपने वर्तमान के श्री सद्गुरु जी से मिले महाराज जी के गुरु जी का नाम गौरंगी शरण जी महाराज।
कहते हैं महाराज जी ने 10 वर्षों तक अपने गुरु जी की सेवा की। महाराज जी सदैव अपने गुरु जी की आज्ञा का पालन करते थे। महाराज जी के गुरु जी उन पर सदैव प्रसन्न रहते थे।
महाराज जी ने अपने गुरु जी के बहुत निष्ठा से सेवा की गुरुदेव जी की कृपा से उनके अंदर श्री राधा जी के प्रति भक्ति और श्रद्धा उत्पन्न हो गई ।
महाराज जी अपने शिष्य और वृंदावन से बहुत प्रेम करते हैं। महाराज जी के वचन बड़े बड़े पापी को भी धर्म के रास्ते पर आने के लिए प्रेरित करते हैं।
इनकी वाणी में नाम महिमा ध्यान महिमा और प्रेम महिमा पर विशेष जोर दिया जाता है ऐसे महान संतों को हम बारंबार प्रणाम करते हैं।
प्रेमानंद जी महाराज जी का स्वास्थ्य
महाराज जी कई वर्षों से किडनी की समस्या से भी जूझ रहे हैं
वार्तालाप के दौरान किसी ने महाराज जी से पूछा महाराज जी आपका स्वास्थ्य कैसा है ?
महाराज जी ने बताया कि स्वास्थ्य गड़बड़ रहता है श्री जी की कृपा से चलता रहता है। एक दिन बाद डायलिसिस होता है। यदि मैं यह आभास करूं कि मैं बीमार हूं तो अभी परेशान हो जाऊंगा। क्योंकि कई बार उल्टियां सब भाविक ऐसा लगता था कि उल्टी आ रही है परंतु हो नहीं रही होती।
कभी कमर में दर्द कभी शरीर के किसी हिस्से में दर्द होता रहता है । डायलिसिस में भी 4 घंटे मछली की तरह शरीर तड़पता है। 350 की रफ्तार में 74 बार खून फिल्टर होता है। श्री जी की कृपा से डायलिसिस व्यवस्था है और उनकी किरपा से शरीर चल रहा है।
प्रेमानंद जी महाराज का वृन्दावन में आश्रम कहाँ है ?|| premanand ji maharaj ashram address
Pujya Shri Premanand ji Maharaj
Raman Reiti, Vrindavan, Uttar Pradesh 281121
OR
Parikrama Marg, Purani Kalidaha, Vrindavan, Uttar Pradesh 281121
प्रेमानंद जी महाराज जी से संपर्क कैसे करें
इस लिंक पर click करें – https://vrindavanrasmahima.com/contact/
प्रेमानंद जी महाराज जी से कैसे मिल सकते हैं ?
समय सारिणी (प्रातः कालीन)
प्रातः 4.30 – 5.20 : पूज्य महाराज द्वारा दैनिक सत्संग
प्रातः 5.20 – 6.15 : मंगला आरती एवं वनविहार
प्रातः 6.15 – 8.15 : श्री हित चतुरासी जी/ श्री हित राधासुधा निधि
प्रातः 8.15 – 9.15 : श्रृंगार आरती, भक्त नामावली राधा नाम संकीर्तन
श्री प्रेमानंद जी महाराज के प्रवचन
हमारा शरीर निरन्तर जा रहा है, बचपन गया, जवानी चली गयी और हमें पता भी नहीं चला; ऐसे ही एक दिन बुढ़ापा भी चला जायगा। धीरे-धीरे मौत हमारे करीब आ रही है।
अतः हमें अपना समय उसी काममें लगाना चाहिये, जिसे हम ही कर सकते हैं, दूसरा कोई भी कर नहीं सकता, अपना कल्याण या अपना उद्धार केवल एकमात्र हम ही कर सकते हैं।
संसारके काम तो दूसरे लोग भी कर सकते हैं। हम यहाँ निर्धारित समयसे ज्यादा रहनेवाले नहीं हैं। हम यहाँ आये हैं और हमें एक न एक दिन जाना ही पड़ेगा। हम यहाँ पशु- पक्षियोंकी तरह अपने कर्मोंका फल भोगनेके लिये ही नहीं हैं, हम यहाँ अपना उद्धार करनेके लिये भी आये हैं।
इसलिये सबसे पहले यह विश्वास होना चाहिये कि भगवान् मेरे हैं। जैसे माँ मेरी है—यह विश्वास होता है, वैसे ही भगवान् हमारी सबसे बड़ी माँ हैं। वे माँ भी हैं- पिता भी हैं – ऐसा मानना चाहिये।
परमात्मा कैसे भी हों, आखिर हैं तो हमारे ही, संसार कैसा भी हो, उसको एक न एक दिन छोड़ना ही है। जब उसे छूट जाना है तो उसपर क्या विचार करें, जिसको पाना है उसपर विचार करें।
परमपिता परमात्मा हैं और वे अपने ही हैं, उनको छोड़कर शरीर को मुख्य मानना महान् गलती होगी। श्री भगवान् के अंशको श्रीभगवान नाम ही स्थित होना चाहिये, पर हम भूलवश प्रकृतिके अंशको पकड़े बैठे हैं ।
इस देह में यह सनातन जीवात्मा मेरा ही अंश है, परंतु वही जीवात्मा प्रकृतिमें स्थित मन और पाँचों इन्द्रियों को आकर्षित करता है अर्थात् वह उन्हें ही अपना मान लेता है।
जबकि वास्तविक स्थिति यह है कि श्रीभगवान जी हमें निरन्तर अपने पास बुला रहे हैं, इसीलिये हम-आप कहीं टिक नहीं पाते, जिसे पकड़ते हैं, वह हमारे हाथसे छूट जाता है।
इसीलिये परमपिता परमात्मा भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं कि तुम सब कुछ छोड़कर मेरी शरण में आ जाओ, मैं तुझे सम्पूर्ण पापोंसे मुक्त कर दूँगा, तू शोक मत कर- शरणमें जानेका काम जीवका है और सब पापोंसे मुक्त करनेका काम श्री भगवान का है।
अपने उद्धार के लिये खास बात यही है कि आपको मैं- पन बदलना ही होगा। यदि मैं साधक हूँ तो साधन से विरुद्ध काम कैसे कर सकता हूँ? दूसरेका कर्तव्य देखना अनधिकार प्रयास है।
साधन करनेका निर्धारित समय नहीं होता, ऐसा नहीं है कि इतने घण्टे कर लिया, अब छुट्टी हो गयी । साधना करना तो जीवन है। तू सब समय में निरन्तर अपने सभी कार्यों को करते हुए भगवन नाम का स्मरण कर ।
श्री राधे