डर क्यों लगता है
डर, एक ऐसी अनोखी अवस्था है, जो हमारी मानसिक और शारीरिक संरचना को प्रभावित कर सकती है। यह एक संकेत होता है, जो हमारे दिमाग में किसी खतरे की संभावना को सूचित करता है। विज्ञान बताता है कि डर का मूल कारण हमारे दिमाग के भीतर होता है। यह विभिन्न कारणों से उत्पन्न होता है, जैसे कि जीवन की चुनौतियों, अनियंत्रित घटनाओं, या गहरी अनुभूतियों से जुड़े डर।
डर से धड़कने लगता है दिल
डर का विज्ञान मानता है कि यह हमारे शरीर को भी प्रभावित करता है। यह हमारे हृदय की धड़कन को तेज कर सकता है, हमारी सांसों की रफतार बढ़ा सकता है और हमारे मस्तिष्क को अलर्ट मोड में ले आता है। अनेक बार यह डर व्यक्तिगत स्तर पर भी होता है, जहां हमारे पारम्परिक और मानसिक अनुभवों के आधार पर डर की अनुभूति होती है।
वैज्ञानिकों के अनुसार, डर को महसूस करते समय इंसान के दिमाग में दो सर्किट होते हैं, जो इस अनुभव को उत्पन्न करते हैं।
इन सर्किटों में कैल्सीटोनिन जीन-रिलेटेड पेप्टाइड और न्यूरॉन्स होते हैं, जो दिमाग के एमिग्डाला का हिस्सा हैं। यह मिल कर डर की भावना को उत्पन्न करते हैं।
जब इंसान को डर लगता है, तो उसके शरीर में विशेष हार्मोन और रासायनिक तत्व निकलते हैं। इनमें कोर्टिसोल, एपिनेफ्रीन, नॉरपेनेफ्रीन और कैल्शियम शामिल हैं।
ये हार्मोन और रासायनिक तत्व डर के समय शरीर की विभिन्न क्रियाओं को नियंत्रित करते हैं।
डर से हो सकती है मौत
बहुत सारे मामलों में जब लोग अत्यधिक डरते हैं, तो यह उनके लिए बहुत खतरनाक हो सकता है। ऐसी स्थितियों में हार्ट अटैक या अन्य समस्याएं हो सकती हैं, जिससे व्यक्ति की जान को भी खतरा हो सकता है। जब डर ज्यादा होता है, तो शरीर में एड्रेनेलीन हॉर्मोन की मात्रा बढ़ जाती है। दिमाग से यह हॉर्मोन एक तेज लहर के रूप में निकलता है, जो पूरे शरीर को लड़ने या ढीले पड़ने के मोड पर ले आता है।
मांसपेशियों में खून का बहाव तेजी से होना शुरू हो जाता है। इससे यह भी हो सकता है कि आपके अंग ज्यादा तेजी से काम करने की वजह से फेल हो जाएं।