जय सत् चित् आनन्द मूरति – स्तोत्र
जय सत्-चित्-आनन्द मूरति , स्वामी जी के चरण वन्दनम् । जो दे उपदेश क्लेश नाशैं, कलि के कलुष विभंजनम् ॥ 1 ॥
जो ज्ञान-निधि विज्ञान-दायक, घायकं घायकं सब सब दुष्कृतम् । युतयोग भोगहिं रोग जानें, सुख-दुखं सम अरि-मितम् ॥ 2 ॥
परमारथ पथ भेद वेद के, खेद बिन जो दायकम् । शरणागत के भरम हत के, सत् ही के कर लायकम् ।। 3 ॥
मलयदल-अमल अचल पदाम्बुज, सद्गुरु के जो ध्यावतम् । सुख सुयश सुगति सुबुद्धि सुशान्ति, बिन प्रयास सो पावतम् ॥ 4 ॥
है जग जन्म सफल तिस का, जो गुरु-पद-रज मन लावहिं । ज्यों पारस परस कुधातु सुधरे, त्यों फिर जन्म न आवहिं ॥ 5 ॥
दया के सिन्धु ज्यों, शीतल इन्दु ज्यों, ॐ के बिन्दु ज्यों भासतम् । तेजमय भानु ज्यों, विद्या की खान ज्यों, अहनिशि ध्यान में वासतम् ॥ 6 ॥
परम धर्म श्री सतगुरु की सेवा, विदित नरक निवारणम् । जासु शब्द भव-बन्धन काटत, समझ पड़त यहि कारणम् ॥ 7 ॥
सन्त महात्मा और बुध-जन, वेद पुराण यहि गावहिं । प्रभु ते अधिक गुरु जो सेवत, सो निश्चय प्रभु पावहिं ।। 8 ।।
शुक- सनकादिक, ध्रुव-नारदादिक, गुरु-उपदेश ते अमरणम् । ऋषि मुनि जन प्राकृत जग में, ले दीक्षा प्रभु सुमिरणम् ॥ 9 ॥
गुरु-यश दिक्-पद अहनिशि गावत, दसहुँ दिशि भ्रम दुःख जारतम् । गुरु-पद-जलज अलि मन जाको, ‘साहिबचन्द’ उच्चारतम् ।। 10 ।।