कविता
जब फूल खुशी में मुस्काया,
तो माली ने उसको नोच लिया।
यही हाल होगा गुंचा का कल,
जो आज फूल का हाल हुआ
तेरे साथ भी ऐ भोले प्राणी,
इक दिन ऐसा ही होना है।
काल रूप माली के हाथों,
तूने भी जीवन खोना है।
हर एक चीज़ की मियाद रखी,
कुदरत ने अलग अलग जान कर ।
नहीं कोई मियाद मगर तेरी,
ऐ बशर तू दिल में पहचान कर ।
कुदरत ने हर एक वस्तु के,
ज़िम्मे कुछ काम लगाया है।
उस काम की खातिर उसने भी,
गुण वैसा ही अपनाया है।
अपना काम कर जाती है।
फैला जाती है।
क्या
होना चाहिये।
क्या हासिल तुझको करना है,
दुनिया में आकर हर इक शै,
अपनी तासीर मुताबिक वह,
रंगो-बू
तेरा नाम है अशरफ -उल-मख़लूकात
, किरदार रुतबा जग में क्या तेरा है, क्या काम तेरा होना चाहिये ।
कभी दिल में यह भी सोचा है,
तू आया जग में किस खातिर । और नर तन मिला है किस खातिर । बंदे से खुदा बनना तुझको, है लक्ष्य यही जिसे पाना पाना है। और शब्द में सुरत मिला करके, मिल हक में हक हो जाना है। यह लक्ष्य तभी होगा हासिल, गुरु गाएगा ।
जब गुरु का दास बन जाएगा ।
तब होगा जीवन सफल तेरा,
गुण सदा
,