चंद्रयान- 3 मिशन : चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग

चंद्रयान– 3

‘चंदा मामा दूर के’ बचपन की यह लोरी भारतीय जनमानस के पोर पोर में बसी हुई है। उस चंदा मामा को अब तक दूर से देखते थे तो उसकी आभा और शीतलता से मन प्रसन्नता से भर जाता था, पर अब भारत का अंतरिक्ष यान ‘चंद्रयान 3’ सचमुच ही चंदा मामा के आंगन में उतर गया है।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने बुधवार को अंतरिक्ष क्षेत्र में एक नया इतिहास रचते हुए चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडर ‘विक्रम’ और रोवर ‘प्रज्ञान’ से लैस लँडर मॉड्यूल (एल.एम.) की सॉफ्ट लैंडिंग कराने में सफलता अर्जित की।

भारतीय समयानुसार सायं 6.04 बजे चंद्रयान-3 ने चांद की सतह को छुआ। इसके साथ ही भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग कराने वाला विश्व का पहला देश बन गया है तथा चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाले 4 देशों में शामिल हो गया है। यह एक ऐसी उपलब्धि है जो अब तक किसी भी अन्य देश को हासिल नहीं हुई है।

इसरो के महत्वाकांक्षी तीसरे चंद्रमा मिशन ‘चंद्रयान- 3’ के इस अभियान के अंतिम चरण में सारी प्रक्रियाएं पूर्व निर्धारित योजनाओं के अनुरूप ठीक से चलीं। लगभग 3.84 लाख कि.मी. की यात्रा के बाद लँडर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास उतरा।

यह एक ऐसी सफलता है जिसे न केवल इसरो के शीर्ष वैज्ञानिक बल्कि भारत का हर आम और खास आदमी टी.वी. स्क्रीन पर टकटकी लगाए देख रहा था। चंद्रयान-3 मिशन पर 600 करोड़ रुपए की लागत आई और यह 14 जुलाई को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहुँचने के लिए 41 दिन की यात्रा पर रवाना हुआ था। इसे प्रक्षेपण यान लॉन्च व्हीकल मार्क-3 (एल.वी.एम. – 3) ” रॉकेट से प्रक्षेपित किया गया था। मिशन में बुधवार सायं मिली सफलता से पूरे देश में उत्सव मनाया गया और इसकी सफलता की कामना के लिए देशभर में यज्ञ और हवन कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। सबकुछ भारत के वैज्ञानिकों व जनता के मन के अनुकूल हुआ।

150 से 100 किलोमीटर की ऊंचाई पर पहुंचने पर लैंडर ने अपने सैंसर और कैमरों का इस्तेमाल कर सतह की जांच की ताकि यह पता चल सके कि कहीं कोई बाधा तो नहीं है और फिर इसने ‘सॉफ्ट-लैंडिंग’ करने के लिए नीचे उतरना शुरू कर दिया।

लैंडिंग के लिए लगभग 30 किलोमीटर की ऊंचाई पर लेंडर ‘पॉवर ब्रेकिंग फेज’ में रहा। गति धीरे- धीरे कम करके सतह तक पहुंचने के लिए ‘4 ‘थस्टर इंजन’ की ‘रैट्रो फायरिंग’ करके उनका उपयोग शुरू किया ताकि चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण से लेंडर क्रैश न हो जाए।

6.8 किलोमीटर की ऊंचाई पर 2 इंजन का इस्तेमाल हुआ और बाकी 2 इंजन बंद कर दिए गए। इससे सतह के और व निकट आने के समय लैंडर को ‘रिवर्स थ्रस्ट’ देना था।

लैंडर की गति को 30 किलोमीटर की ऊंचाई से अंतिम लैंडिंग तक कम करने की प्रक्रिया और अंतरिक्ष यान को निर्देशित करने की क्षमता लैंडिंग का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा रही।

सॉफ्ट-लैंडिंग के बाद रोवर अपने एक साइड पैनल का उपयोग करके लैडर के अंदर से चंद्रमा की सतह पर उतरा जो रैंप के रूप में इस्तेमाल हुआ।

‘लैंडर ‘विक्रम’ से नीचे उतरकर प्रयोग में जुटा रोवर ‘प्रज्ञान’

चंद्रमा की सतह और आसपास के वातावरण का अध्ययन करने के लिए लैंडर और रोवर के पास एक चंद्र दिवस अर्थात पृथ्वी के लगभग 14 दिन के बराबर का समय है। लैंडिंग के साथ ही चंद्रयान- 3 मिशन का एक बड़ा हिस्सा पूरा हो चुका है। शेष हिस्सा चंद्रमा रोवर ‘प्रज्ञान’ है जो लैंडर से नीचे उतर गया और चारों ओर घूम-घूमकर प्रोग्राम किए गए प्रयोग कर रहा है।

चंद्रयान-1

चंद्रयान-1 2009 में चंद्रमा के अंधेरे व सर्वाधिक ठंडे हिस्से में पानी और बर्फ का पता चला था

इसरो ने 15 वर्ष में 3 चंद्र अभियान भेजे हैं। प्रतीत होता है मानो चंद्रमा इसरो को अपने यहां बार-बार आमंत्रित करता है। चंद्रयान-1 भारत का पहला चंद्र •अभियान था। इसका प्रक्षेपण 22 अक्तूबर, 2008 को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से हुआ था।

यान में भारत, अमरीका, ब्रिटेन, जर्मनी, स्वीडन और बुल्गारिया निर्मित 11 वैज्ञानिक उपकरण थे जिसने चंद्रमा के रासायनिक, खनिज विज्ञान और फोटो- भूगर्भीय मानचित्रण के लिए उसकी सतह से 100 किलोमीटर की ऊंचाई पर चारों ओर परिक्रमा की थी।

2009 में चंद्रयान-1 से मिले डाटा से पहली बार चंद्रमा के ध्रुवीय अंधकार वाले और सबसे अधिक ठंडे हिस्से में पानी और बर्फ का पता चला था।

चंद्रयान-2

सतह पर नहीं उतर पाए, पर ऑर्बिटर के सभी 8 वैज्ञानिक उपकरण अब तक कर रहे काम

एक दशक बाद चंद्रयान-2 को 22 जुलाई, 2019 को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया गया जिसमें एक ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर शामिल था। देश के दूसरे चंद्र अभियान का उद्देश्य ऑर्बिटर पर पेलोड द्वारा वैज्ञानिक अध्ययन और चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग तथा घूर्णन की प्रौद्योगिकी का प्रदर्शन करना था।

चांद पर पहुंचने के अंतिम चरण में रोवर के साथ लैंडर दुर्घटनाग्रस्त हो गया जिससे चांद की सतह पर उतरने का उसका उद्देश्य सफल नहीं हो पाया।

इतना होने पर भी, लैंडर और रोवर से अलग हो चुके ऑर्बिटर के सभी 8 वैज्ञानिक उपकरण डिजाइन के अनुसार कार्य कर रहे हैं और बहुमूल्य वैज्ञानिक आंकड़े उपलब्ध करा रहे हैं। ऑर्बिटर का अभियान जीवन 7 वर्ष तक बढ़ गया।

चंद्रयान-3 के प्रणोदन मॉड्यूल का ‘एस.एच.ए.पी.ई.’ पेलोड इस अभियान की एक और विशेषता है। एस.एच.ए.पी.ई. अर्थात ‘स्पैक्ट्रो-पोलरीमैट्री ऑफ हैबिटेबल प्लानेट अर्थ’ चंद्रयान-3 पर स्थापित एक प्रायोगिक पेलोड है जो निकट अवरक्त तरंग दैर्ध्य रेंज (नियर-इंफ्रारेड वेवलैंथ रेंज) में पृथ्वी की स्पैक्ट्रो-पोलरीमैट्रिक विशेषताओं का अध्ययन करेगा।

यह चंद्रयान- 3 मिशन के प्रणोदन मॉड्यूल में मौजूद एकमात्र वैज्ञानिक पेलोड है। एस.एच.ए.पी.ई. पेलोड से जिन प्रमुख वैज्ञानिक गुत्थियों को सुलझाने का प्रयास किया जाएगा, उनमें पृथ्वी जैसे एक्सो-प्लानेट (बहिर्गृह अर्थात हमारे सौरमंडल से बाहर स्थित ग्रह) का डिस्क – एकीकृत स्पैक्ट्रम क्या हो सकता है और पृथ्वी जैसे एक्सो- प्लानेट से डिस्क – एकीकृत ध्रुवीकरण क्या हो सकता है, जैसे रहस्य शामिल हैं।

चंद्रयान-3 मिशन ने 17 अगस्त को एक बड़ी कामयाबी हासिल की, जब रोवर से लैस लैंडर मॉड्यूल यान के प्रणोदन मॉड्यूल से सफलतापूर्वक अलग हो गया जिसमें एस.एच.ए.पी.ई. पेलोड मौजूद है। भविष्य में परावर्तित प्रकाश में छोटे ग्रहों की खोज एस. एच. ए. पी. ई. पेलोड का एक प्रमुख लक्ष्य होगा जिससे इसरो को ऐसे एक्सो-प्लानेट के रहस्य खंगालने में मदद मिलेगी जो जीवन के पनपने या रहने योग्य हो सकते हैं।

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