गुरुमति धारण करो

गुरुवाणी में वर्णन आया है

सबदि मरहु फिरि जीवहु सद ही ता फिरि मरण न होई ।। अंम्रितु नामु सदा मनि मीठा सबदे पावै कोई ।

गुरुवाणी में वर्णन

सदा जीवित कौन रहते है

वर्णन करते हैं कि जो अपने आपको शब्द में मिटा देते हैं वे सदा ही जीवित रहते हैं।

जो नाम का मीठा अमृत पी लेते हैं वे अमर हो जाते हैं। लेकिन कोई विरले भाग्यशाली गुरुमुख ही इस रस का पान करते हैं। आम दुनिया तो विषय वासनाओं के विषैले रस का पान करने में ही संलग्न है।

केवल गुरुमुख ही गुरु आज्ञा का आधार लेकर, अपनी . मति को गुरुमति में ढालकर जीवन में सच्चा आनंद प्राप्त करते हैं। बड़े बड़े महापरुषों ने भी सदगरु की आज्ञा को सर्वोपरि मान श्रद्धा प्रेम से उसका परिपालन कर सद्गुरु की प्रसन्नता को प्राप्त किया।

महर्षि वशिष्ठ जी ने जब भगवान श्री रामचन्द्र का उपदेश देना प्रारम्भ किया तो

महर्षि वशिष्ठ जी ने जब भगवान श्री रामचन्द्र का उपदेश देना प्रारम्भ किया तो भगवान श्री रामचन्द्र जा बार बार उनसे सवाल पछने लगे। महर्षि वशिष्ठ जी न उनसे पूछा कि आप हमें यह बताएं कि आप ज्ञानी है या अज्ञानी?

अगर आप ज्ञानी हैं तो आपको कुछ भी सुनने की आवश्यकता नहीं।

अगर ज्ञान लेने की इच्छा से आप मेरे वचनों को श्रवण कर उन पर श्रद्धा रखकर मेरे वचनों को श्रवण , अमल करोगे तो सब कुछ बिना पूछे ही जान जाओगे।

अवतारी पुरुषो ने भी सतगुरु की मति को धारण किया

उसके पश्चात उन्होंने शांति से बैठकर वचन श्रवण किये। ऐसे अवतारी पुरुषों ने भी सद्गुरु की मति को धारण कर उसे सत जाना। इसलिए हमें भी हर वक्त अपने मन एवं बुद्धि को परे रखकर श्रद्धा सहित गुरुमति को अपनाना चाहिए।

गुरुवाणी में वर्णन आया है

कहु नानक जिनि हुकमु पछाता ॥

कहु नानक जिनि हुकमु पछाता ॥

सत्पुरुष कथन करते हैं कि जो प्रभु परमात्मा के हुकम व उनकी रज़ा को जान लेते हैं वे मालिक की धुर दरगाही वाणी के गूढ़ रहस्य का भेद पा लेते हैं।

जब अर्जुन ने भगवन का हुकम माना

अर्जुन ने भगवान का हुकम मानकर युद्ध में कितने ही लोगों को निष्प्राण कर दिया तो भी भगवान ने निज मुख से उसकी शूरवीरता  की बढ़ाई करते हुए उसे भक्त की उपाधि दी।

हुकम से कार्य करने में कोई दोष नहीं लगता। रूहानियत में जो बढ़ाई है वह हुकम की है। प्रायः लोग मन के ख्यालों से चलकर धोखा खा जाते हैं।

गुरुवाणी में वर्णन आया है

गुर की मति तूं लेहि इआने ॥ भगति बिना बह डूबे सिआने ॥

सत्पुरुष फ़रमाते हैं कि ऐ भोले प्राणी! तू गुरुमति धारण कर। भाव यह कि उनकी शरण में आकर उनके सदुपदेशों पर आचरण कर। गुरु की भक्ति बिना बहुत बुद्धिमान प्राणी भी मोह की लहरों में डूब गए हैं।

  •  पूर्ण सद्गुरु की आवाज़ परमात्मा की आवाज़ है। उनके हुकम का मनन करोगे तो वे स्वयंमेव ही आपकी रक्षा करेंगे और कोई भी दुःख, कष्ट व क्लेश आपके पास नहीं आ सकेगा।
जो सद्गुरु के हुकम के अंदर रहकर, मन इंद्रियों को जीतकर पाँच विकारों से सुरक्षित हो गए हैं, उन्होंने ही  रूहानी उन्नति की है।

इसलिए जिसको सच्चे सुख की  प्राप्ति की इच्छा हो और जो मनुष्य जन्म की सफलता चाहता हो तो वह मनमति का त्याग करके गरुमति को । ग्रहण करे तो कुदरत की सभी शक्तियां उसका साथ देंगी और वह लोक में भी सुखी रहेगा और उसका परलोक भी सुखी हो जाएगा।

अनहद नाद

आनंद संदेश

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