कैसे ध्यान की शक्ति से अपने सपनों को हकीकत में बदल सकते हैं?

ध्यान की शक्ति | | हर काम में ध्यान कैसे लगाएं?

क्या आपने कभी सोचा है कि हर एक कदम जो हम जिंदगी में उठाते हैं वह हमारे लिए एक नया सफर की शुरुआत होता है। आज हम साथ में उस सफर की शुरुआत करेंगे। जिसमें हर काम को ध्यान बनाओ और आगे बढ़ो का मंत्र हमें सही दिशा दिखाता है।

इस मंत्र के पीछे छुपी ताकत है जो हमें हर एक कार्य में हर एक लम्हे में नई दिशा देती है। जब हम अपने कामों को ध्यान से करते हैं तब हम अपने इरादों को साकार करते हैं नई मंजिलों की तरफ बढ़ते आज हम सीखेंगे।

कैसे ध्यान से काम करके हम अपने सपनों को हकीकत में बदल सकते हैं ?

कैसे हर कदम एक नए सफर की शुरुआत बन सकता है ?

तो चलिए आज हम इस मंत्र के साथ मिलकर नए सफर की शुरुआत करते हैं जिसमें हर कदम एक नई कहानी का आरंभ होगा।

बहुत पहले की बात है एक महान सम्राट अपने रोज के कामों से परेशान रहने लगता था। उसको हर काम में मन नहीं लगता था तब एक बार सम्राट के कानों तक बात पहुंची कि उसके राज्य में लाऊ नाम का एक बौद्ध भिक्षु असाधारण दार्शनिक रहता है। जब मंत्रियों ने बताया कि लाऊ के एक-एक शब्द में जीवन का सत्य छुपा है उनके जैसा प्रबुद्ध व्यक्ति दूर दूर तक नहीं है।

तब सम्राट ने सोचा कि एक बार चलकर देखते हैं कि लाऊ झंगहा है। अगले दिन सम्राट लाऊ से मिलने निकला लाऊ पहाड़ के पास एक छोटे से कस्बे में रहते थे।

रास्ता बहुत लंबा था बीच रास्ते में पता किया तो लोगों ने भी लाऊ की तारीफ की सम्राट ने सोचा कि सच में कोई बुद्धिमान पढ़ा लिखा और प्रभावशाली व्यक्ति होगा। शाम को जब सम्राट लाऊ जू की झोपड़ी के बाहर पहुंचा तो एक मजदूर छोटी सी बगिया में काम कर रहा था।

शरीर पर मिट्टी लगी थी पैरों में चप्पल नहीं थी सम्राट ने पूछा अरे बागवान महोदय लाऊ कहां है में उनसे मिलना चाहता हूं बागवान ने कहा श्रीमान आप अंदर बैठिए मैं अभी लाऊ को बुलाता हूं सम्राट अंदर बैठक प्रतीक्षा करने लगा।

थोड़ी देर में लाऊ ने झोपड़ी में आकर नमस्कार किया। सम्राट ने हैरान होकर कहा अरे आप तो वही बागवान है जो बाहर थे। लाऊ ने कहा कसूर माफ करें में छोटा सा काम कर रहा था। में ही बागवान हूं और मैं ही लाऊ छू हूं।

आप आने का कारण बताएं सम्राट ने कहा मैंने सुना है कि आप जैसा असाधारण व्यक्ति राज्य में दूसरा नहीं है तो मैं आपसे मिलने चला आया में आपसे आत्मज्ञान पर उपदेश चाहता हूं लेकिन मुझे माफ कीजिए में देख रहा हूं कि आपके पास ना कोई किताब है ना कोई सीधी ना कोई कला के संकेत दिखते हैं। लेकिन फिर भी आप बहुत शांत दिख रहे हैं क्या मुझे आप अपना सीक्रेट बता सकते हैं

लाऊ ने कहा सुबह का समय ठीक रहेगा कल सूर्योदय होने से पहले आप मुझसे मिलिए। यह कहकर लाऊ मौन हो गए उस रात सम्राट को नींद नहीं आई उसे कौतूहल था। कि लाओ मुझे क्या बताने वाले हैं।

अगले दिन सम्राट पहुंचे तो लाऊ जू बगीचे में खड़े थे। लाऊ ने कहा सम्राट यहां आइए और इस जग से पौधे पर धीरे-धीरे पानी डालो ऐसा करते-करते इन 15 पौधों पर पानी डालना। लेकिन पानी डालते समय तुम कुछ और मत करना ना कुछ और सोचना अपना ध्यान पानी और पौधे पर बनाए रखना अगर कोई आए तो रुक जाना और दोबारा पहले पौधे से पानी डालना।

जब तुम सारे पौधों को पानी दे दो तब मेरे पास आना।

सम्राट को पहली बार इस तरह का काम मिला था। सम्राट ने बड़े ध्यान से पहले पौधे में पानी डाला फिर दूसरे पौधे में पानी डाला फिर तीसरे पौधे पर जा ही रहा था कि वह महल के बगीचे के बारे में सोचने लगा।

सम्राट बुद्धिमान था उसे पता था कि लाऊ उसकी परीक्षा ले रहे हैं। अगर वह चीटिंग करेगा तो पकड़ा जाएगा। इसलिए सम्राट दोबारा पहले पौधे पर पानी डाल ले गया इस बार वह दूसरे पौधे तक पहुंचा ही था कि पानी डालते डालते वह नदी के बारे में सोचने लगा।

सम्राट परेशान होकर दोबारा पहले पौधे के पास पहुंचा सम्राट जितनी कोशिश करता उतना व्याकुल हो जाता और खुद को किसी ना किसी विचार में फंसा हुआ पाता।

आखिर शाम हो गई लेकिन सम्राट आखिरी पौधे तक पहुंच नहीं सका जब सम्राट थक कर बैठ गया। तब लाऊ ने कहा सम्राट मैं तुम्हारी ईमानदारी से बहुत खुश हूं इसलिए सुनो जब मन विचारों से खाली होता है तब उसमें मन का असली स्वरूप यानी साइलेंट अवेयरनेस प्रकट होती है।

तब हर साधारण काम भी तुम्हें असीम ज्ञान शांति देता है राजा ने कहा लेकिन यह संभव कैसे है जब हम काम करते हैं तो हमें कई विचार परेशान करते हैं लाऊ ने कहा राजा तुम पौधे में पानी नहीं डाल रहे थे। तुम जल्दी से जल्दी काम खत्म करना चाहते थे।

तुम्हें काम खत्म करने की जल्दी थी जिससे तुम मुझसे, बात कर सको इसलिए तुम्हें यह काम बोझ लग रहा था । जिस कारण तुम इस पल में रुक नहीं पाए अगर तुम इस फल की कीमत समझकर केवल पौधे और पानी पर ध्यान देते तो तुम्हें कोई विचार परेशान नहीं करते राजा ने कहा यह सब तो में समझ रहा हूं लेकिन इस पल में रहना बहुत कठिन है क्या मुझे इसके लिए अकेले रहकर तपस्या करनी पड़ेगी लाऊ कहते हैं कि शांत मन तो पहले से ही मौजूद है।

इसके लिए कहीं जंगल जाने की जरूरत नहीं है सबसे पहले अपनी सांस पर ध्यान देना सीखो तब आपको पता चलेगा कि शांति तो सांस के साथ ही बनी हुई है।

उसके बाद काम करते करते सांस पर ध्यान बनाए रखो आप बोलते चलते सोचते हुए भी अपनी सांस पर ध्यान दे सकते हो जब आप ऐसा करते हो तो बिखरा हुआ मन सिमट लगता है और एकाग्र यानी वन पॉइंटेड जाता है।

वन पॉइंट माइंड से जब कोई काम किया जाता है तो उस मन में केवल वही काम रिफ्लेक्ट होता है और कोई विचार उत्पन्न नहीं होता जब ऐसा होता है तो कर्ता और कर्म एक हो जाता है और साइलेंट अवेयरनेस जो पहले से बनी हुई थी वह प्रकट हो जाती है।

तुम इसे आत्मज्ञान आनंद प्रेजेंट मूवमेंट इसे जो चाहे नाम दो यह आसानी से प्राप्त हो जाती है। लाऊ कहते हैं। जो मन मुश्किल को रजिस्ट नहीं करता जो मन परेशानी से भागता नहीं है केवल सचेत रहता है। वह मन हर परेशानी को पार कर जाता है दोस्तों कभी काम को बोझ मानकर जल्दी-जल्दी खत्म करने की कोशिश मत करो।

क्योंकि इससे तनाव पैदा होता है आप यहां नहीं बल्कि कहीं और होना चाहते हो तनाव के कारण मन में विचार हावी होने लगते हैं। जिससे इरिटेशन होता है और काम जो प्रेजेंट मूवमेंट का दरवाजा था वह सच में बोझ लगने लगता है।

इसकी जगह काम शुरू करने से पहले अपना ध्यान सांस पर ले आओ और फिर काम के दौरान भी ऐसा करो सांस का ध्यान काम के ध्यान में बदल जाएगा और कठिनाई डिस्टरबेंस आते हुए भी आपको छू नहीं पाएंगे। उम्मीद है कि आपको इससे बहुत कुछ सीखने को मिला होगा ऐसे ही हमारे जीवन को बदल देने वाले विचारों को पढ़ते रहे।

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