आत्मा क्या है ?
हृदय-शल्य चिकित्सक जानना चाहते है कि आत्मा क्या है ?
विन्डसर : कनाडा के एक विश्वविख्यात हृदय-शल्य चिकित्सक कहते हैं कि वे शरीर में आत्मा के अस्तित्व में विश्वास रखते हैं, जो मृत्यु के समय प्रस्थान कर जाता है, और कहते हैं कि धर्मशास्त्रियों को इसके विषय में अधिक जानकारी के लिए प्रयत्न करना चाहिए।
टोरान्टो जनरल अस्पताल में हृदय शल्यचिकित्सा यूनिट के प्रमुख डॉ. विल्फ्रेड जी. बिगलो ने कहा कि, “एक ऐसे व्यक्ति की हैसियत से जो आत्मा के अस्तित्व में विश्वास करता है, ” उनका विचार है कि समय आ गया है कि ”इसके रहस्य को अनावृत किया जाये और पता लगाया जाये कि वह है क्या।’
बिगलो उस पैनल के सदस्य थे, जो मृत्यु के सही-सही क्षण को परिभाषित करने के प्रयासों से सम्बन्धित एसेक्स काउण्टी मेडिको लीगल सोसायटी के समक्ष विचार विमर्श के लिए उपस्थित हुआ था। हृदय के एवं अन्य अंगों के प्रत्यारोपण के युग में यह प्रश्न उन मामलों में जीवन्त उठा है जब ‘दाता’ निश्चित रूप से मर रहे हों।
कनाडा की मेडिकल एसोसियेशन ने मृत्यु की व्यापक रूप से स्वीकृत परिभाषा प्रस्तुत की है कि मृत्यु वह क्षण है, जब रोगी मूर्च्छा की स्थिति में होता है और वह किसी प्रकार की उत्तेजना पर प्रतिक्रिया नहीं करता और मशीन पर रिकार्ड की गई उसके मस्तिष्क की विद्युत तरंगे समतल होती हैं। पैनल के दूसरे सदस्य थे, ओन्टेरियो सर्वोच्च न्यायालय
न्यायाधीश एडसन एल. हेनीज और विन्डसर विश्वविद्यालय के अध्यक्ष, जे. फ्रांसिस लेड्डी। विचार-विमर्श में जिन प्रश्नों को बिगलो ने उठाया था, उनकी व्याख्या करते हुए उन्होंने बाद में एक साक्षात्कार में बताया कि बत्तीस वर्षो तक शल्य-चिकित्सक के रूप में उनके काम ने उनके मन में कोई सन्देह नहीं छोड़ा है कि आत्मा है।
“ऐसे कुछ उदाहरण मिलते हैं, जहाँ आप उस क्षण स्वयं उपस्थित हों जब लोग जीवित दशा से मृत्यु में प्रवेश करते हैं और उनमें कुछ रहस्यात्मक परिवर्तन होते हैं।
‘उस समय सर्वाधिक ध्यानाकर्षक परिवर्तन होता है: आँखों में जीवन अथवा ज्योति का अभाव हो जाना। वे अपारदर्शी और पूर्णतः निर्जीव हो जाती हैं।
‘हम जो देखते हैं, उसको शब्दों में लिखना कठिन है। वास्तव में मैं नहीं समझता कि इसको अच्छी तरह शब्दों में लिखना सम्भव भी है।”
“डीप फ्रीज” शल्य-तकनीक का क्षेत्र, जिसे हाइपोथर्मिया के नाम से जाना जाता है, उसमें अग्रणी कार्य करने के कारण और “हार्ट से वाल्व सर्जरी” के कारण बिगलो विश्व-विख्यात हो गये।
उन्होंने कहा कि “आत्मा का अनुसन्धान” धर्म-विज्ञान एवं अन्य सम्बन्धित प्रवर्गों ” द्वारा विश्वविद्यालय में किया जाना चाहिए।” इस विचार-विमर्श में लेड्डी ने कहा कि “यदि आत्मा है, आप उसे देख तो नहीं सकते।
आप उसे ढूँढ भी नहीं सकते।” “यदि कोई जीवन-शक्ति अथवा जीवन-तत्त्व है, तो वह क्या है?” समस्या यह है कि “आत्मा, भौगोलिक दृष्टि से, कहीं एक विशिष्ट स्थान पर तो होता नहीं है। वह शरीर में हर जगह है, और फिर भी शरीर में कहीं नहीं।”
लेड्डी ने कहा, “प्रयोग प्रारम्भ करना अच्छा होगा, लेकिन मैं नहीं जानता कि आपको इनमें से किसी पर भी आँकड़े कैसे मिलेंगे” उन्होंने आगे बताया कि इस विचार-विमर्श ने उन्हें सोवियत अन्तरिक्ष यात्रों का स्मरण करा दिया जिसने अन्तरिक्ष से वापस आने पर बताया कि ईश्वर नाम की कोई चीज नहीं है, क्योंकि उसने उन्हें वहाँ ऊपर नहीं देखा।
बिगलो ने कहा कि कदाचित् ऐसा हो, किन्तु आधुनिक औषध विज्ञान में जब हम ऐसा कुछ पाते हैं जिसकी हम व्याख्या नहीं कर सकते, तो “संकेत-शब्द यह होता है कि जवाब ढूँढ़िये, प्रयोगशाला में ले जाइये, उसे कहीं ऐसी जगह ले जाइये जहाँ सत्य को ढूंढ़ा जा सके।” बिगलो ने कहा कि मुख्य प्रश्न है, “आत्मा कहाँ है और वह कहाँ से आता है ?”
श्रील प्रभुपाद वैदिक साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं
मेरे प्रिय डॉ. बिगलो,
कृपया मेरा अभिवादन स्वीकार करें। मैंने हाल ही के गजट में रे कोरेली का एक लेख पढ़ा, जिसका शीर्षक था एक हृदय शल्यचिकित्सक जानना चाहते हैं कि आत्मा क्या है। मुझे यह लेख बहुत रोचक लगा।
आपकी टिप्पणियों से आपकी गहन अन्तर्दृष्टि का पता लगता है, इसलिए मैंने आपको इस विषय पर लिखने की बात सोचो। सम्भवतः आप जानते हों कि मैं अन्तर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ का संस्थापक आचार्य हूँ।
कनाडा में-मॉन्ट्रियल, टोरंटो, वैंकूवर और हेमिल्टन में मेरे कई मन्दिर हैं। इस कृष्णभावनामृत आन्दोलन का उद्देश्य, प्रत्येक आत्मा को विशेष रूप से उसकी मूल आध्यात्मिक स्थिति की शिक्षा देना है।
इसमें सन्देह नहीं कि आत्मा मनुष्य के हृदय में विद्यमान रहता है, और वह उन सभी ऊर्जाओं का स्रोत है जो शरीर का पोषण करती हैं। आत्मा की शक्ति समूचे शरीर में व्याप्त रहती है और इसी का नाम चेतना है।
चूँकि यह चेतना समूचे शरीर में आत्मा की शक्ति का विस्तार करती है, अतः हमें शरीर के प्रत्येक अंग में पीड़ा और आनन्द का अनुभव होता है।
आत्मा व्यष्टि है और वह एक शरीर से दूसरे शरीर में देहान्तरण करता है, ठीक उसी प्रकार जैसे कि कोई व्यक्ति बाल्यावस्था से युवावस्था और तब वृद्धावस्था की ओर देहान्तरण करता है।
जब हम नये शरीर में देहान्तरण करते हैं तो मृत्यु होती हैं, ठीक वैसे ही जैसे हम पुराने कपड़ों को बदल कर नये कपड़े पहनते हैं। इसे आत्मा का देहान्तरण कहा जाता है।
जब कोई आत्मा आध्यात्मिक जगत् के अपने असली घर को भूल कर इस भौतिक जगत् का भोग करना चाहता है, तो वह अस्तित्व के लिए इस संघर्षपूर्ण, कठोर जीवन को ग्रहण करता है।
बारम्बार जन्म, मृत्यु, जरा तथा व्याधि का यह अस्वाभाविक जीवन उस समय रोका जा सकता है, जब उसकी चेतना भगवान् की परम चेतना से जुड़ जाये। यही कृष्णभावनामृत आन्दोलन का आधारभूत सिद्धान्त है।
जहाँ तक हृदय-प्रत्यारोपण का सम्बंध है, उस समय तक सफलता का प्रश्न नहीं उठता जब तक ग्रहण करने वाले व्यक्ति का आत्मा प्रत्यारोपित हृदय में प्रवेश नहीं कर जाता।
अतएव आत्मा की सत्ता स्वीकार की जानी चाहिए। मैथुन में यदि आत्मा नहीं है, तो गर्भाधान नहीं हो सकता, और न ही गर्भ धारण। गर्भ-निरोध गर्भाशय को बिगाड़ देता है, जिससे वह आत्मा के लिए अच्छा स्थान नहीं रह जाता।
यह ईश्वर के आदेश के विरुद्ध है। ईश्वर के आदेश से एक आत्मा को किसी विशिष्ट गर्भाशय के लिए भेजा जाता है, किन्तु गर्भ निरोध-विधियों से उसे उक्त गर्भाशय से वंचित कर दिया जाता है, और उसे किसी दूसरे गर्भ में रखना पड़ता है।
यह परम प्रभु के आदेश का उल्लंघन है। उदाहरणार्थ, एक व्यक्ति को लीजिए, जिसे एक विशिष्ट घर में रहना है। यदि वहाँ स्थिति इतनी अशान्त है कि वह उस घर में प्रवेश नहीं कर सकता, तो उसे बहुत हानि उठानी पड़ती है। यह नियम विरुद्ध हस्तक्षेप है और कानून द्वारा दण्डनीय है।
निश्चय ही, ‘आत्मा की शोध’ का कार्य विज्ञान की प्रगति का सूचक होगा। परन्तु विज्ञान चाहे जितनी प्रगति कर ले, वैज्ञानिकों को आत्मा का पता नहीं मिलेगा।
आत्मा के अस्तित्व को हम परिस्थितिजन्य तथ्यों के आधार पर ही स्वीकार कर सकते हैं, क्योंकि वैदिक साहित्य में उल्लेख है कि आत्मा का माप एक बिन्दु का दस हजारवाँ अंश है।
इसलिए भौतिक विज्ञानियों के लिए आत्मा को पकड़ पाना सम्भव नहीं है। आप केवल उच्च अधिकारियों द्वारा दिये गए ज्ञान के आधार पर ही आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार कर सकते हैं। जिन तथ्यों को बड़े से बड़े वैज्ञानिक आज सत्य स्वीकार कर रहे हैं, हम इनकी व्याख्या बहुत समय पहले ही कर चुके हैं।
ज्योंही कोई आत्मा के अस्तित्व को समझ लेता है, वह तत्काल परमेश्वर के अस्तित्व को भी समझ सकता है। आत्मा और परमेश्वर में अन्तर इतना ही है कि परमात्मा विभु आत्मा हैं और जीवात्मा एक अत्यन्त लघु आत्मा है; परन्तु गुणात्मक दृष्टि से दोनों समान हैं। परमेश्वर सर्वव्यापक हैं, और जीवात्मा स्थानीकृत है। परन्तु दोनों के स्वभाव और गुण समान हैं।
आपने कहा है कि मुख्य प्रश्न है,
आत्मा कहाँ है, और वह कहाँ से आता है ? इसे समझना कठिन नहीं है।
हमने पहले ही विवेचन कर लिया है कि आत्मा जीव के हृदय में कैसे वास करता है, और मृत्यु के पश्चात् किस प्रकार वह दूसरे शरीर में आश्रय लेता है।
मूलतः आत्मा परमेश्वर से आता है। जैसे एक चिनगारी, जो आगसे निकलती है, आग से दूर गिरने पर बुझती-सी मालूम होती है, वैसे ही आत्मा का स्फुलिंग प्रारम्भ में आध्यात्मिक जगत् से भौतिक जगत् में आता है।
भौतिक जगत् में आत्मा तीन विभिन्न स्थितियों में गिर जाता है, जिन्हें प्रकृति के गुण कहा जाता है- सत्त्व, रजस् और तमस्। जब आग की चिनगारी सूखी घास पर पड़ती है, तो वह अपनी आग्नेय अभिव्यक्ति जारी रखती है।
जब वह चिनगारी जमीन पर गिरती है, तो वह अपनी आग्नेय अभिव्यक्ति उस समय तक प्रकट नहीं करती, जब तक कि कुछ ज्वलनशील वस्तुएँ मौजूद न हों; और जब चिनगारी पानी पर गिरती है, तो वह बुझ जाती है। इस प्रकार, हम देखते हैं आत्मा तीन प्रकार की स्थितियों को प्राप्त करता है।
इनमें से एक स्थिति के अन्तर्गत जीवात्मा अपने आध्यात्मिक स्वरूप को पूर्णत: भूला हुआ होता है; दूसरी में लगभग भूला हुआ होता है, किन्तु फिर भी इसमें अपने आध्यात्मिक स्वरूप का सहज भाव रहता है, और तीसरी में अपनी आध्यात्मिक पूर्णता की गहन खोज करता रहता है।
आत्मा के चिन्मय स्फुलिंग द्वारा आध्यात्मिक पूर्णता प्राप्त करने के लिए एक प्रामाणिक विधि है, और यदि उसका ठीक तरह मार्गदर्शन किया जाये, तो वह अतिशीघ्र वापस घर भेज दिया जाता है, अर्थात् भगवान् के पास, जहाँ से वह मूलत: गिरा था।
यदि वैदिक साहित्य से अधिकृत इस ज्ञान को आधुनिक वैज्ञानिक समझ के आधार पर प्रस्तुत किया जाये तो यह मानव समाज के लिए बड़ी देन होगी। तथ्य तो सबके सामने हैं। केवल उन्हें आधुनिक समझ के लिए ग्राह्य रूप में प्रस्तुत करना है।
यदि संसार के डाक्टर और वैज्ञानिक सामान्य जनता को आत्मा के विज्ञान को समझने में सहायता दे सकें, तो यह एक महान योगदान होगा।
भवदीय,
ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी