हरिवंश राय बच्चन कविता – कोयल
हरिवंश राय बच्चन कविता कोयल अहे, कोयल की पहली कूक ! अचानक उसका पड़ना बोल, हृदय में मधुरस देना घोल, श्रवणों का उत्सुक होना, बनना जिह्वा का मूक ! कूक, कोयल, या कोई मंत्र, फूँक जो तू आमोद-प्रमोद, भरेगी वसुंधरा की गोद ? कायाकल्प – क्रिया करने का ज्ञात तुझे क्या तंत्र ? बदल अब … Read more