करवाचौथ एक ऐसा भावनाओं का मकसद भी रहता है। ऐसे अवसर दाम्पत्व से जुड़े मन के गहरे तार और एक-दूसरे के लिए दिल में गहरे प्रेम को भी अलग शब्दों में परिभाषित कर जाते हैं।
कहीं पतियों के मन में भी इस बात का अहसास रहता है कि हमारी लंबी उम्र और सफलता के लिए पत्नियों ने व्रत रखा है। कुछ पुरुष अपनी इस भावना को प्रदर्शित कर देते हैं और कुछ मन में ही रखते हैं लेकिन यह भावना उनके मन में प्रेम के प्रवाह को बनाए रखती है….
पर्व है जो पति पत्नी के रिश्ते में अथाह प्यार व विश्वास भर देता है जिसमें दिनभर भूखे रहकर उपवास करने तथा शाम को पति के हाथों जल पीकर उपवास खोलने से लेकर उननी से चांद देखने, सजने संवरने के पीछे तमाम आस्थाओं और
पति की लम्बी आयु के लिए पत्नी की तरफ से रखा जाने वाला
करवाचौथ का व्रत सबसे अहम व्रत माना गया है। व्रत के साथ-साथ अगर इसे हिंदुओं का प्रमुख त्यौहार कहा जाए तो अतिश्योक्ति न होगी। इस व्रत में भगवान शिव-पार्वती, गणेश और चन्द्रमा का पूजन किया जाता है। अखंड सौभाग्यवती की कामना का यह व्रत निर्जल रखा जाता है। पूरा दिन भूखे-प्यासे pi कर स्त्रियां अपने सुहाग की लम्बी आयु की कामना करती हैं।
अटूट बंधन का प्रतीक करवाचौथ
करवाचौथ का व्रत पति-पत्नी के आत्मिक और अटूट रिश्ते का प्रतीक है। कहते हैं कि इस व्रत को रखने से पति-पत्नी में आपसी विश्वास, प्यार और स्नेह बढ़ता है। यही तीन चीजें ही मुख्यतः गृहस्थी का आधार मानी गई है। इस व्रत को करने से दोनों के रिश्ते में मिठास आती है और दोनों का रिश्ता प्रगाढ बनता है।
व्रत के नियम एवं परम्पराएं
इस व्रत को करने के अपने नियम व परम्पराएं हैं। सूर्योदय से पहले तारों की छांव में स्त्रियां उठकर सरगी खाती हैं और पूरा दिन बिना भोजन और पानी के रहकर चंद्रमा को देखकर अर्घ्य देकर इस व्रत को खोला जाता है।
सरगी का महत्व
सरगी सास की तरफ से अपनी बहू को दिया जाने वाला एक खास उपहार होता है जो कि एक साम आशीर्वाद के रूप में अपनी बहू को देती है। इस उपहार में श्रृंगार का सामान, विभिन्न खाद्य पदार्थ और वस्त्र इत्यादि शामिल होते हैं। यह सरगी असल में सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक होती है।
शाम को होती है कथा
शाम के समय कथा की जाती है। सुहागिन स्त्रियां एक जगह इकट्ठी होती हैं और शगुन आदि के गीत भी इस दौरान गाए जाते हैं। शाम के समय कथा की जाती है। स्त्रिया एक-दूसरे से करवड़ा बंटाती हैं और भगवान से अपने सुहाग के लिए प्रार्थना करती हैं। कथा सुनने के बाद सुहागिनें अपनी सास को बया देती हैं और पैर छूकर उनसे आशीर्वाद लेती हैं।
चांद को देख खोलती है व्रत
शाम को चांद को देखकर अर्घ्य देकर व्रत खोला जाता है। चांद को देखने के बाद पति का चेहरा देखने की परंपरा भी प्रचलित है। उसके बाद पति अपने हाथ से पत्नी को जल पिलाकर व्रत खुलवाते हैं। कुंवारियां भी रखती हैं व्रत
कार्तिक महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी में रखे जाने वाले इस व्रत को कुंवारी लड़कियां भी बड़े चाव से रखती हैं जहां सुहागिनों के लिए यह व्रत पति की लम्बी आयु की कामना करने के लिए होता है वहीं दूसरी ओर कुंवारी कन्याएं इस आस्था से यह व्रत रखती हैं कि उन्हें मनचाहा वर मिलेगा। वह भी इस दिन निर्जला रहती हैं और रात को तारे को देखकर उसे अर्घ्य देकर अपना व्रत खोलती हैं।
द्रौपदी ने भी रखा था व्रत
शास्त्रों के मुताबिक इस व्रत के समान सौभाग्यदायक कोई व्रत नहीं है। व्रत का विधान इतना प्राचीन है कि द्रौपदी ने भी भगवान श्री कृष्ण के कहने पर यह व्रत रखा था। पांडवों के वनवास के दौरान अर्जुन तप करने के लिए नीलगिरी पर्वत चले गए थे।
जब कई दिन बीत जाने के बाद वह नहीं लौटे तो द्रौपदी को चिंता सताने लगी। द्रौपदी की यह हालत देखकर भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें इस व्रत को करने का महत्व बताया और चांद की पूजा करने को कहा।
पौराणिक कथा के अनुसार द्रौपदी को उनके इस व्रत का फल मिला और अर्जुन तपस्या कर सकुशल लौट आए।