सत्मार्ग
- जौहरी के संग में इन्सान को जैसे हीरे को परखने मिलती है, वैसे ही संत सद्गुरु के संग में जीव की “सूझबूझ की अंदर की आँख खुलती है और सच झूठ को परखने की विवेक शक्ति मिलती है।
- जिनकी आँख खुल जाती है, वे स्वयं को सच पर कुर्बान कर देते हैं, लेकिन सच का त्याग नहीं करते। दुनिया उन्हें कितना भी गुमराह करे और अपने कथनानुसार चलने को बाध्य करे, फिर भी वे सत्य का मार्ग नहीं त्यागते।
- वे सब कठिनाइयों को सहन करके भी अपने मार्ग से विचलित नहीं होते। हर विषम परिस्थिति का सामना करके वे अन्ततः सच में ही समा जाते हैं।
- भक्तिमती मीरा बाई जी का नाम आज भी बड़े आदर व सम्मान सहित लिया जाता है। उनकी भक्ति के फलस्वरूप न केवल मेवाड़ अथवा राजस्थान का ही सिर ऊँचा हुआ अपितु पूरे हिंदुस्तान का सिर ऊँचा हुआ।
- अब सोचा जाए कि अगर मीरा बाई जी भक्ति के सत्मार्ग को त्यागकर लोगों के कहने पर झूठ को अपना लेतीं तो क्या वह इतनी उच्च अवस्था पर पहुँच पातीं?
- विजय तो सच की ही होती है फिर लोग चाहे लाख बुराइयाँ कर ले।
- श्री गुरु नानक देव जी को कुछ लोग कुराही कहकर
- बुलाने लगे। क्योंकि वे लोग स्वयं जिस गलत मार्ग पर चल रहे थे उसे ही ठीक जान उन्हें भी उसी रास्ते पर चलने को कहने लगे।
- एक तरफ लाखों लोग हों और दूसरी तरफ फ़कत एक अकेला व्यक्ति हो, यह कोई मामूली मुकाबला तो नहीं होता।
- लेकिन सत्य पर भरोसा करने वाले कभी झूठ के आगे घुटने नहीं टेकते। श्री गुरु नानक देव जी अपने सत्य के मार्ग पर अडिग रहे।
- ऐसे सच्चे सद्गुरु के शिष्य भी सच को ग्रहण कर सच के लिए सब कुछ कुर्बान कर देते हैं।
- जो कमज़ोर ख्यालों के होते हैं, वे भक्ति मार्ग अपना तो लेते हैं परन्तु परीक्षा के समय डाँवाडोल हो जाते हैं।
- वे स्तुति व निंदा की लहरों का टकराव सहन नहीं कर पाते और भवसागर में गोते खाकर अपना सब कुछ गंवा देते हैं। संत दूलनदास जी अपनी वाणी में वर्णन करते हैं
- धृग तन धृग मन धृग जनम, धृग जीवन जग माहिं । दूलन प्रीति लगाय जिन्ह, ओर निबाहि नाहिं ।
- कथन करते हैं कि उनके तन, मन, जन्म व जीवन को धिक्कार है जिन्होंने जग में आकर मालिक से प्रीत लगाकर तोड़ नहीं निभाई।
- सच्ची रूहानी विद्या को छोड़कर झूठी विद्या को ग्रहण करने के चक्र में उम्र गँवा दी।
- एक दृष्टांत है-एक सेठ ने पढ़ लिखकर अच्छी विद्या हासिल कर ली। एक दिन वह एक नाव पर चढ़कर
- नदी पार कर रहा था। रास्ते में बातचीत करते हुए उसने नाविक से पूछा कि तुमने जिंदगी को सुखी व्यतीत करने के लिए कोई विद्या हासिल की है?
- नाविक ने कहा कि में तो केवल नाव चलाना जानता हूँ और यही मेरी आजीविका का साधन है। सेठ ने पुनः पूछा कि तुमने कोई धन राशि भी जमा की है या नहीं?
- उसने कहा कि प्रतिदिन जितना कमाता हूँ, उतना मेरे व मेरे परिवार के खान पान के लिए पर्याप्त होता है।
- सेठ ने कहा कि जीवन बसर करने के लिए चार पहलू आवश्यक होते हैं-विद्या, हुनर, धन और चौथा स्वास्थ्य।
- इनमें से तीन तो तुम्हारे पास है नहीं, बाकी एक सेहत तुम्हारी अच्छी है। इस तरह बातें चल ही रही थीं कि नाविक ने अचानक देखा कि दूर से ज़ोरदार तूफान आ रहा है।
- उसकी छोटी सी नाव उस तूफान को झेलने में असमर्थ थी। इसलिए उसने नाव को छोड़कर नदी में तैरने की सोची। उसने सेठ से पूछा कि क्या तुम तैरना जानते हो? सेठ ने कहा कि मुझे तो तैरना नहीं आता।
- नाविक • बोला कि अगर तुम्हें तैरना नहीं आता तो तुम्हारे चारों पहलू अच्छे होते हुए भी तुम बच नहीं पाओगे ।
- अब देखना यह है कि वह कौन सी विद्या है जो जीव । को भवसागर से पार ले जा सकती है। सन्त पलटूदास जी, वर्णन करते हैं
- पलटू जप तप के किहे, सरै न एकौ काज । भवसागर के तरन को, सतगुरु नाम जहाज ॥
- संत पलटूदास जी अपनी वाणी में वर्णन करते हैं कि जप तप व तीर्थ आदि करने से कोई कार्य सिद्ध नहीं होता।
- सद्गुरु नाम रूपी जहाज पर बैठकर ही दुनिया रूपी अगम व अथाह भवसागर को पार किया जा सकता है। जो गुरु नाम की कमाई करके चंचल चित्त को एकाग्र कर लेता है, वह भवसागर की लहरों में नहीं डूबता ।
- गुरु ज्ञान के बिना अस्थिर बुद्धि होने के कारण मनुष्य गेंद की तरह उछलता रह जाता है।
- जिसकी विवेक की आँख नहीं खुली, उसको शास्त्र कौन सा लाभ देंगे? जिसकी आँखें ही नहीं हैं, दर्पण उसकी क्या सहायता करेगा?
- जिसने मन की चंचलता पर नियन्त्रण नहीं किया उसे अन्त में पश्चात्ताप करना पड़ेगा। इसलिए आत्मिक कल्याण हेतु संतों द्वारा निर्दिष्ट मार्ग पर चलना अति अनिवार्य है।