यदि कोई बुरा भी करे तो हमें शान्त क्यों रहना चाहिये?

उत्तर : – जो तोको काँटा बुवै, ताहि बोव तू फूल । तोहि फूल को फूल हैं, वाको है तिरसूल ॥

कोई बुरा भी करे तो हमें शान्त रहना चाहिये क्यूंकिकुदरत प्रत्येक बुरे कर्म का फल या दण्ड देती है। मनुष्य को यह कुदरत पर छोड़ देना चाहिये। यदि किसी ने अपराध किया है तो तुम्हें उस अपराधी को सज़ा देने का कोई अधिकार नहीं है।

केवल न्यायाधीश ही उसे सज़ा दे सकता है। इसीप्रकार प्रकृति ही सच्चा न्यायाधीश है, जो उसे यानि प्रत्येक प्राणी को उसके बुरे कर्म की सज़ा देती है।

सन्त महापुरुष कहते हैं कि यदि कोई तुम्हारे साथ दुर्व्यवहार करे तो तुम उसके लिए सद्व्यवहार करो।

तुम्हारे अच्छे व्यवहार का तुम्हें फल मिलना है तथा बुरे कर्म करने वाला स्वयं अपने कर्मों का भागीदार बनेगा।

निम्नलिखित कथा से हमें उपदेश मिलता है कि बुरे के साथ भी भला करने से कितना लाभ होता है। सन्तों का भी कथन है

॥ दोहा ॥

करैं भलाई भले स्यों, यह जग का व्यवहार । भला करै जो मंद स्यों, ते विरले संसार ॥

ऐसे मनुष्य अपना तो जीवन संवारते ही हैं वस्तुतः औरों के जीवन को भी प्रभावित करते हैं।भगवान् बुद्ध के एक पूर्णा नामक शिष्य थे। यह भक्त अमली कार्यवाही कर रूहानी प्रचारक बने।

उन्होंने भगवान् बुद्ध से ‘स्वर्णपरन्ता द्वीप’ धर्म प्रचार के लिए जाने की आज्ञा माँगी। तो उन्होंने कहा – उस प्रान्त के लोग तो अत्यन्त कठोर तथा क्रूर हैं। तुम्हारी निन्दा करेंगे। तुम्हें कैसा लगेगा?

भक्त पूर्णा – प्रभु! मैं आपके आशीर्वाद से आपके द्वारा मिली अध्यात्म विद्या तथा शान्ति द्वारा उनकी उद्दण्डता पर विजय प्राप्त कर लूँगा। मैं खुद को भी सान्त्वना दूँगा कि वे भले लोग हैं क्योंकि वे मुझे मार तो नहीं रहे।

भगवान् बुद्ध ने कहा–यदि वे मारें तो तुम क्या करोगे ? भक्त पूर्णा- मैं क्रोध नहीं करूँगा। मैं सोचूँगा वे डण्डे तो नहीं मार रहे। वे भले लोग हैं।

भगवान् बुद्ध-यदि वे पत्थर तथा डण्डे मारें तो क्या करोगे ?

भक्त पूर्णा—तो भी मैं समझँगा कि वे दयालु हैं, शस्त्र तो

नहीं उठा रहे ।

भगवान् बुद्ध – यदि वे शस्त्र प्रहार करें तो क्या करोगे ?

भक्त पूर्णा- इसमें भी मुझे आपकी कृपा दीखेगी। मैं सोचूँगा कि उन्होंने दया कर मेरा वध नहीं किया।

भगवान् बुद्ध – ऐसा नहीं कहा जा सकता कि वे तुम्हारा वध नहीं करेंगे।

भक्त पूर्णा- भगवन्! तब मैं सोचूँगा कि संसार दुःख रूप है। शरीर नाशवान् है। उन्होंने मुझे शरीर से छुटकारा दिलाकर मुझ पर उपकार किया है। वे लोग बहुत अच्छे सिद्ध होंगे।

भगवान् बुद्ध – शाबास! तुझ में सहनशीलता, धैर्य तथा साहस के गुण चरम सीमा तक पहुँच चुके हैं। तुम निश्चय ही सफलता प्राप्त करोगे। तुम्हें आज्ञा है, तुम वहाँ जा सकते हो।

वहाँ भक्त पूर्णा के भक्ति प्रचार से तथा सहनशीलता और धैर्य से, अपने आदर्शमयी जीवन से वहाँ के पुरुषों का पाषाण हृदय भी कोमलता और भक्ति भावना से भर गया, उन लोगों के जीवन का भी सुधार हो गया।

इस कथा से हमें ज्ञात होता है कि अपने अच्छे कर्मों का फल निश्चय मिलता है। शान्ति और सहनशीलता निश्चय ही प्रभावशाली है।

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